तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है। भजन संहिता 119:105
भागीदारी के बिना प्रतिबद्धता मरी हुयी है
Commitment without involvement is dead
बिना भागीदारी के कोई प्रतिबद्धता नही होती है। इस बात को आप याद कर लें, रेखांकित कर ले, इस पर गोला बना लें। स्टीफन कोवी ने कहा कि, “भागीदारी नही तो प्रतिबद्धता नही।”
प्रभु के कार्य में आप कितने भागीदार है? याद कीजिये कि बारह वर्ष की आयु में प्रभु यीशु मसीह अपनी माता से कहते है कि, “तुम मुझे क्यों ढूंढते हो क्या नही जानते थे कि मुझे अपने पिता के भवन में होना अवश्य है?” (लूका 2:49)
क्या हम अपने स्वर्गीय पिता के कार्य के प्रति प्रतिबद्ध है? क्या हम बिना भागीदारी के प्रतिबद्ध हो सकते है? यदि हम अपने पिता के कार्य में भागीदार नही है तो फिर हम किसके कार्य में भागीदार है? वह कौन सा कार्य है जिस में हम अपना समय और ध्यान देते है? प्रतिदिन हम अपना समय कैसे व्यतित करते है - अपने कार्य में या पिता के कार्य में?
जिन लोगों ने अपने जीवन भर की कमाई किसी व्यवसाय में लगा दी है वे उसको सफल करने के लिए प्रतिबद्ध रहते है। वे केवल समय ही नही देते बल्कि कार्य भी करते है। यदि वे प्रतिबद्ध है तो ऐसा नही होता कि वे देर से आये और जल्दी चले जाये। दुनिया में प्रतिबद्ध कर्मचारी और केवल समय देने वाले कर्मचारी में भेद करना कठिन नही है। जो कर्मचारी कार्य में व्यक्तिगत रूचि लेता है वह अपने कार्य में अधिक समय देता है और परिणाम को प्राप्त करने का प्रयास करता है।
क्या हम ऐसा सोचते है कि प्रभु हमें यह बता सकता है कि हम पिता के कार्य के प्रति प्रतिबद्ध है या नही? यदि हम मीटिंग में अनियमित रूप से जाते है तो क्या हम प्रतिबद्ध है? यदि हम प्रतिदिन बाईबिल पढ़ने के लिए समय नही देते है तो क्या हम प्रतिबद्ध है? याद रखिये कि बिना भागीदारी के प्रतिबद्धता नही होती है। क्या हम अपने भाईयों और बहनों के जीवन में रूचि रखते है या हम केवल समय पर मीटिंग में आते है और समाप्त होते ही तुरन्त चले जाते है? क्या हम कलिसियां के किसी भी कार्यक्रम को सफल बनाने में सहायता करते है या जो लोग कार्य करते है उनकी आलोचना करते है।
यीशु ने कहा, “उनके फलों से तुम उन्हें पहचान लोगे। क्या लोग झाड़ियों से अंगूर, या ऊँटकटारों से अंजीर तोड़ते है? इसी प्रकार हर एक अच्छा पेड़ अच्छा फल लाता है और निकम्मा पेड़ बुरा फल लाता है। अच्छा पेड़ बुरा फल नही ला सकता, और न निकम्मा पेड़ अच्छा फल ला सकता है। जो जो पेड़ अच्छा फल नहीं लाता, वह काटा और आग में डाला जाता है। इस प्रकार उनके फलों से तुम उन्हें पहचान लोगे।” (मत्ती 7:16-20)
अपनी प्रतिबद्धता दिखाने के लिए हममें कौन से फल होने चाहिये? यदि हम एक पेड़ होते तो क्या हम पर फल लगते, क्या यह अच्छे फल होते, या हम काट डाले जाते? शीघ्र ही वह समय आ रहा है जब हमें प्रभु के सामने उत्तर देना होगा, और प्रभु हमारे फलों का या हमारी कमियों का निरीक्षण करेगा। प्रतिबद्धता का समय अभी है। यदि हम अब प्रतिबद्ध है तो हम प्रभु की सेवा में सक्रिय रहने के लिए अपना ध्यान केन्द्रित करेंगे, लेकिन यदि हम प्रतिबद्ध नही है तो कोई फल नही होगा और न कोई कार्य होगा। याकूब ने कहा, “विश्वास कर्म बिना मरा हुआ है” (याकूब 2:26)
सरदीस की कलिसियां के लिए यह सन्देश था कि, “मैं तुम्हारे कामों को जानता हूँ, लोगों का कहना है कि तुम जीवित हो, किन्तु वास्तव में तुम मरे हुए हो” (प्रकाशितवाक्य 3:1) क्या हम मरें हुए है? सरदीस और हमारे लिए यह सन्देश है कि, “सावधान रह! और जो कुछ शेष है, इससे पहले कि वह पूरी तरह नष्ट हो जाये, उसे सुदृढ़ बना क्योंकि अपने परमेश्वर की निगाह में मैने तेरे कर्मो को उत्तम नही पाया है।” (प्रकाशितवाक्य 3:2-3)
तो आओ हम अपने मनों में यह निश्चय करें कि हम प्रभु के कामों में भागीदारी के द्वारा पूर्णरूप से प्रतिबद्ध रहेंगे।
हमारी भागीदारी को बढाना हमारी प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है ठीक वैसे ही जैसे हमारे काम हमारे विश्वास को प्रदर्शित करते है। राजा सुलैमान मन्दिर के प्रति अपने समर्पण को दिखाते हुए लोगों को सन्देश देता है कि, “तो तुम्हारा मन हमारे परमेश्वर यहोवा की ओर ऐसी पूरी रीति से लगा रहे, कि आज के समान उसकी विधियों पर चलते और उसकी आज्ञाएँ मानते रहो” (1 राजा 8:61)
इस बात को चिन्हित कर ले, रेंखाकित कर ले, इस पर गोला बना ले और फिर ऐसा ही करें।
‘भागीदारी के बिना प्रतिबद्धता मरी हुयी है’ (Commitment without involvement is dead) is taken from ‘Minute Meditations’ by Robert J. Lloyd
धन और सम्पत्ति
Wealth and Money
पैसे की आपके जीवन में क्या भूमिका है? क्या यह आपका पैसा है या आपका ईश्वर है? हम यहां इस बात पर विचार करेंगे कि पैसे के प्रति आपका कैसा रवैया होना चाहिये और अपको इसका प्रबन्धन किस प्रकार करना चाहिये।
मुख्य पद: लैव्यव्यवस्था 26:3-12
बार-बार परमेश्वर ने इस्राएल को आज्ञा दी कि वह उसकी आज्ञाओं का पालन करें और उसकी व्यवस्था से प्रेम करें। परमेश्वर ने इस्राएल से प्रतिज्ञा की, कि यदि वह उसकी बात सुने और आज्ञाकारी रहें तो उनको बहुतायत से धन, स्वास्थ और शान्ति मिलेगी। और एक समय में इस्राएल ने ऐसा ही किया और वह परमेश्वर का आज्ञाकारी रहा और उनको प्रतिज्ञा के अनुसार आशीषें मिली। परमेश्वर से आशीष पाने वाला ऐसा ही एक व्यक्ति था, राजा सुलैमान। परमेश्वर ने सुलैमान से कहा, “मैं तुझे इतना धन सम्पत्ति और ऐश्वर्य दूंगा, जितना न तो तुझ से पहले किसी राजा को मिला और न तेरे बाद किसी राजा को मिलेगा। (2 इतिहास 1:12)
राजा सुलैमान पृथ्वी पर सबसे धनी और बुद्धिमान व्यक्ति हो गया । हालांकि वह धीरे-धीरे परमेश्वर से दूर हो गया और उसने बुराई की, (1 राजा 11:9-12) सुलैमान की धन सम्पत्ति ने भी उसकी सहायता नही की कि वह परमेश्वर से प्रेम कर सके या परमेश्वर के प्रेम को खरीद सकें।
- क्या आज भी विश्वासियों के लिए ये आशीषें विद्यमान है? परमेश्वर ने आज्ञाकारिता के बदले धन-सम्पत्ति और पाप के बदले गरीबी की प्रतिज्ञा की। तो क्या इसका अर्थ है कि विश्वासी लोग हमेशा धनी होते है?
- जब “एक धनवान का स्वर्ग के राज्य में प्रवेश कर पाना कठिन है” तो क्यों परमेश्वर ने उन्हें धन-सम्पत्ति से आशीषित किया? (मत्ती 19:23)
- क्या आत्मिकता की दृष्टि से धनी होना और बहुत ही पैसा होने के बीच कोई अन्तर है?
क्या पैसा एक बुराई है?
अब्राहम, इसहाक, याकूब, हिजिकिय्याह, अय्यूब और यहोशापात, ये सब धनी थे। इब्रानियों के 11 अध्याय, जो कि विश्वास का अध्याय कहलाता है, इसमे वर्णित सभी लोग धनी थे। ये लोग केवल पैसे से ही धनी नही थे बल्कि इससे अधिक महत्वपूर्ण यह है कि ये विश्वास में भी धनी थे।
पैसा बुरी चीज नही है। बल्कि बाईबिल बताती है कि धन परमेश्वर की ओर से मिलने वाला एक उपहार है। (व्यवस्थाविवरण 8:18) बल्कि धन का उपयोग करने का तरीका बुरा हो सकता है। इसलिए पैसे का उपयोग करने के लिए परमेश्वर एक शर्त रखता है: आपका धन परमेश्वर का है इसलिए इसे परमेश्वर के लिए उपयोग करें!
राजा दाऊद ने इस बात को जब माना, जब इस्राएल के लागों ने स्वेच्छा से परमेश्वर का भवन बनाने के लिए दान दिया।
“धन और महिमा तेरी ओर से मिलती हैं, और तू सभों के ऊपर प्रभुता करता है... तुझी से तो सब कुछ मिलता है, और हम ने तेरे हाथ से पाकर तूझे दिया है।” (1 इतिहास 29:12,14)राजा सुलैमान, जिसने परमेश्वर का भवन बनाया, कहा,
“अपनी संपत्ति के द्वारा, और अपनी भूमि की सारी पहली उपज दे देकर यहोवा की प्रतिष्ठा करना। (नीतिवचन 3:9)परमेश्वर के धन के साथ विश्वासयोग्य रहना मुश्किल हो सकता है। अपने धन को उचित तरीके से प्रयोग करने के एक से अधिक तरीके है; इसमें आपका व्यवहार भी शामिल है। यदि आप मन ही मन यह विश्वास करते है कि यदि आपके पास अधिक धन होगा तो आप खुश रहेंगे या यदि आप धन कमाने के लिए आवश्यकता से अधिक समय देते है, तो आप परमेश्वर से अधिक धन से प्रेम करते है। (1 तिमुथियुस 6:10) यह बुरा है: “क्योंकि रूपये का लोभ सब प्रकार की बुराईयों की जड़ है।” यदि आप परमेश्वर और उसके मार्गो से प्रेम करते है, तो आप अपने धन को बुद्धिमानी से और निस्वार्थ रूप से प्रयोग करेंगे। मत्ती इस बात को बहुत ही साफ रीति से बताता है जब वह कहता है कि,
“इसलिये तुम चिन्ता करके यह न कहना कि हम क्या खाएँगें, या क्या पीएँगें, या क्या पहिनेंगे। क्योंकि अन्यजातीय इन सब वस्तुओं की खोज में रहते है, परन्तु तुम्हारा स्वर्गीय पिता जानता है कि तुम्हें इन सब वस्तुओं की आवश्यकता है। इसलिए पहिले तुम परमेश्वर के राज्य और उसके धर्म की खोज करो तो ये सब वस्तुएँ भी तुम्हें मिल जाएँगी।” (मत्ती 6:31-33)राजा सुलैमान की गलतियाँ हमें दिखाती है कि धन से उद्धार नही खरीदा जा सकता है। जब तक आप “परमेश्वर का भय न मानें और उसकी आज्ञाओं का पालन न करें” (सभोपदेशक 12:13) तो धनी होना व्यर्थ है। यदि आप धन से धनी होने के बजाय विश्वास में धनी होने की इच्छा रखते है तो परमेश्वर आपको आशीष देगा। (मत्ती 6:1-21)
बुद्धिमानी
धर्मी व्यक्ति एक बुद्धिमान व्यक्ति होता है। नीतिवचन की पुस्तक पैसे का प्रबन्ध बुद्धिमानी से करने के विषय पर बहुत ही व्यवहारिक दृष्टि से प्रकाश डालती है और पूर्व योजना, मेहनती होने और विवेकपूर्ण खर्चे की आवश्यकता पर जोर देती है। उदाहरण के लिए - क्या प्रतिदिन दोपहर का भोजन बनाने के बजाय खरीद कर खाना बुद्धिमानी है?
- परिश्रम करें (नीतिवचन 14:23)
- किसी भी बड़ी खरीदारी से पहले अच्छी कमाई करें (नीतिवचन 24:27; 27:23-27)
- मूर्खतापूर्ण अपनी सारी कमाई खर्च करने के बजाये कुछ बचाकर रखें (नीतिवचन 21:17,20)
- यदि लौटाने की सामर्थ न हो तो ॠण न लें (नीतिवचन 22:26-27)
- गरीब या अमीर होने की इच्छा न करें (नीतिवचन 30:8-9)
कुछ सम्बन्धित पद
पैसे से प्रेम | भोपदेशक 5:10; मत्ती 6:24; 1 तिमुथियुस 6:9-10; 2 तिमुथियुस 3:2; इब्रानियों 13:5 |
धनी होन के नुकसान | नीतिवचन 11:4; मत्ती 13:22; 19:23; लूका 12:20-21 |
उदारता | व्यवस्थाविवरण 15:9-10; प्रेरितों के काम 10:2; 2 कुरिन्थियों 8:1-2; 1 तिमुथियुस 6:18 |
सच्चा धन | भजन संहिता 119:72; रोमियों 11:33; कुलुस्सियों 2:3; याकूब 2:5 |
सन्तोष करना | फिलिप्पियों 4:11-12; 1 तिमुथियुस 6:7-8; इब्रानियों 13:5 |
ईमानदारी
एक धर्मी व्यक्ति ईमानदार होता है। एक मसीही को अपने ॠण के प्रति ईमानदार होना चाहिये।
- धन के लेन देन में ईमानदार रहें (नीतिवचन 11:1)
- अपना ॠण और कर पूरा और समय पर दें (रोमियों 13:1-7)
- अधिक ब्याज की मांग न करें (यहेजकेल 18:7-8)
- कुछ परिस्थितियों में ॠण माफ कर दें (व्यवस्थाविवरण 15:1-3)
(कर को बचाने और कर को कम करने में क्या अन्तर है? क्या कर बचाना ईमानदारी है?)
उदारता
एक धर्मी व्यक्ति उदार व्यक्ति होता है। (व्यवस्थाविवरण 14:22, लैव्यव्यवस्था 27:30) मूसा की व्यवस्था में, परमेश्वर ने इस्राएल को आज्ञा दी कि प्रति वर्ष अपनी हर एक उपज का दसंवा अंश दान दें। दशवा अंश परमेश्वर के प्रति उदारता का ही रूप है। क्या आप अपनी कमाई का दसवा अंश परमेश्वर के लिए देते है? यीशु के अनुयायी दसवें अंश से मुक्त है उनको यह आज्ञा नही दी गयी। मगर तो भी परमेश्वर के लिए उदारता से देने के लिए कोई नियम नही है यह आप पर है कि आप कितना देते है।
बहुत से लोग स्वाभाविक रूप से स्वार्थी होते है और पैसा देना उनके लिए कठिन होता है। विश्वासियों के लिए यह और भी चुनौतीपूर्ण होता है। कर्तव्य स्वरूप देना पर्याप्त नही है, एक विश्वासी को उदार प्रेमी होना चाहिये। पौलुस ने कहा,
“हर एक जन जैसा मन में ठाने वैसा ही दान करें; न कुछ कुढ़ के और न दबाव से, क्योंकि परमेश्वर हर्ष से देनेवाले से प्रेम रखता है।” (2 कुरिन्थियों 9:7)“परमेश्वर प्रसन्नता से देने वालों से प्रेम करता है” अगली बार आप दें तो इस विषय में विचार करें, कि क्या आप उदार है?
लालच
एक धर्मी व्यक्ति लोभ से घृणा करता है। परमेश्वर लालच से इतनी घृणा करता है कि वह इसको मूर्तिपूजा के समान कहता है। तुम “परमेश्वर और धन दोनों की सेवा नहीं कर सकत।” (मत्ती 6:24)
“चौकस रहो, और हर प्रकार के लोभ से अपने आप को बचाए रखो; क्योंकि किसी का जीवन उसकी सम्पत्ति की बहुतायत से नही होता।” (लूका 12:15)आवश्यकता से अधिक की चाहत ही लालच होता है, फिर चाहे आप धनी हो या निर्धन हो। आज इस संसार में जहां लालच का शासन करता है, इसमें इसको न्याय संगत ठहराना बहुत ही आसान है, अपने आप को यह मनवाना कि आप कुछ अधिक पाने के योग्य है - फिर चाहे वह कपड़े हो या कार हो या कुछ अन्य चीज हो। आप किसी भी चीज को अपने लिए बहुत अधिक महत्वपूर्ण बनाने से कैसे बच सकते है? इस समस्या के समाधान के लिए तीन बातों पर विचार करें। राजा सुलैमान ने बहुत ही ज्ञान की बात कही कि मनुष्य कभी सन्तुष्ट नही होता है।
“जो रूपये से प्रीति रखता है वह रूपये से तृप्त न होगा; और न जो बहुत धन से प्रीति रखता है, लाभ से: यह भी व्यर्थ है” (सभोपदेशक 5:10)यहां तक कि सरकार और मीडिया भी लालच को प्रोत्साहित करती है, यह व्यापार, व्यापार में लाभ और जीवन स्तर को बेहतर बनाने में सहायता करने के नाम पर होता है। यह सुनने में बहुत बुरा नही लगता, लेकिन सभी विश्वासियों को इससे बचकर रहना चाहिये।
अधिक खाना, कंजूस, जो कुछ आपके पास है उससे सन्तुष्ट न होना, ये सब लालच के ही रूप है। अब लालच चाहे किसी भी रूप में क्यों न हो वह पाप है और उससे बचना चाहिये।
“धनी होने के लिये परिश्रम न करना; अपनी समझ का भरोसा छोड़ना।” (नीतिवचन 23:4)इसका ईश्वरीय विकल्प यह है कि जो कुछ आपके पास है उससे आप सन्तुष्ट रहे।
“अपने जीवन को धन से प्रेम करने से मुक्त रखें और जो आपके पास है उससे सन्तुष्ट रहें, क्योंकि परमेश्वर ने कहा है कि, ‘मैं तुझे कभी न छोडूँगा, और न कभी तुझे त्यागूँगा।’” (इब्रानियों 13:5)
सारांश
- परमेश्वर ने आपके लाभ के लिए आपको पैसा दिया है।
- मनुष्य ने परमेश्वर को नही बल्कि पैसे को पूजना शुरू कर दिया। लालच मूर्तिपूजा के तुल्य है।
- परमेश्वर के दिये हुए पैसे के प्रति जिम्मेदार रहे और उसने जो कुछ आपको दिया है उससे सन्तुष्ट रहे।
- धनी होने के शक्तिशाली प्रलोभन और पैसे के प्रेम से सावधान रहें।
विचारनीय पद
- मत्ती 6:19-21, 24 को पुन: पढियें। किस प्रकार मानवजाति पैसे की गुलाम है? पृथ्वी पर धन इकट्ठा करने से बुद्धिमानी किस प्रकार भिन्न है?
- किस क्षेत्र में आप असन्तोष के प्रलोभन में आ जाते है? इस पर विजय पाने के लिए आप क्या कर सकते है?
- कभी-कभी प्रसन्नता से देना कठिन होता है। विचार कीजिये कि क्या आप सदैव उदारता से देते है?
- अपने बिलों और ॠणों को समय पर और पूरा अदा करने के लिए आप को क्या कदम उठाने की आवश्यकता है? क्या किसी पारिवारिक व्यक्ति के ॠण अदायगी और बैंक की ॠण अदायगी में कोई अन्तर होना चाहिये?
अन्य खोज
- 1 कुरिन्थियों 16:1-4 और 2 कुरिन्थियों 8:16-21 को पढियें।
- मूसा की व्यवस्था में इस्राएलियों को निर्देश दिये गये थे कि वे अपनी पहिली उपज परमेश्वर को दे। जब आप अपना वेतन पाते है तो क्या परमेश्वर को देने को प्राथमिकता देना महत्वपूर्ण है? यह किस प्रकार किया जा सकता है?
- धन इकट्ठा करने के लिए पौलुस ने जो सावधानी ली क्या वह महत्वपूर्ण थी? इससे किस प्रकार का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है?
- पैसे के विषय में अपनी योजना और अपनी भावनाओं का एक सारांश बनाईये। इस सारांश में लिखियें कि: अपने विषय में आप क्या मानते है कि आप धनी है, निर्धन है या सुखी है? अगले 10 वर्षो के लिए आपका आर्थिक लक्ष्य क्या है? क्या इन योजनाओं में परमेश्वर भी सम्मिलित है?
‘धन और सम्पत्ति’ (Wealth and Money) is from ‘The Way of Life’, edited by Rob J. Hyndman
यदि परमेश्वर हमारे साथ है! (भाग 2)
If God be for us! (Part 2)
यदि हम परमेश्वर के विरूद्ध है और अपने अनुसार कार्य करना चाहते है तो “परमेश्वर आपको गिराएगा” क्योंकि “सहायता करने और गिरा देने दोनों की सामर्थ परमेश्वर में है।”
हमें परमेश्वर की इच्छा के अनुसार आज्ञाकारी रहना चाहिये।
“और तुम अपने शत्रुओं को मार भगाओगे, और वे तुम्हारी तलवार से मारे जाएँगे। तुम में से पाँच मनुष्य सौ को और सौ मनुष्य दस हजार को खदेडेंगे; और तुम्हारे शत्रु तलवार से तुम्हारे आगे आगे मारे जाएँगे।” (लैव्यव्यवस्था 26:7-8)हालांकि वे कद - काठी में छोटे थे - परन्तु वे परमेश्वर की ओर थे – इसलिए कोई समस्या नही थी। वे सौ के साथ पाँच और एक हजार के सामने सौ लड़कर भी जीत सकते थे – कोई समस्या नही थी क्योंकि परमेश्वर उनके साथ था। लेकिन यदि वे परमेश्वर के विरोध में होते तो इसके विपरीत भी सत्य है (पद 36-37)। लेकिन परमेश्वर की कृपा के द्वारा हम उसके अपने लोग है, हम उसके चारागाह की भेड़े है, हम उस जीवते परमेश्वर की सन्तानें है।
यशायाह का 54 अध्याय हमें बड़े ही अतुलनात्मक शब्दों के द्वारा बताता है:
“हे दु:खियारी, तू जो आँधी की सताई है और जिस को शान्ति नहीं मिली, सुन, मैं तेरे पत्थरों की पच्चीकारी करके बैठाऊँगा, और तेरी नींव नीलमणि से डालूँगा। तेरे कलश मैं माणिकों से, तेरे फाटक लालड़ियों से और तेरी सब सीमाओं को मनोहर रत्नों से बनाऊँगा। तेरे सब लड़के यहोवा के सिखलाए हुए होंगे, और उनको बड़ी शान्ति मिलेगी। तू धार्मिकता के द्वारा स्थिर होगी; तू अन्धेर से बचेगी, क्योंकि तुझे डरना न पड़ेगा; और तू भयभीत होने से बचेगी, क्योंकि भय का कारण तेरे पास न आएगा...जितने हथियार तेरी हानि के लिये बनाए जाएँ, उन में से कोई सफल न होगा, और जितने लोग मुद्दई होकर तुझ पर नालिश करें उन सभों से तू जीत जाएगा। यहोवा के दासों का यही भाग होगा, और वे मेरे ही कारण धर्मी ठहरेंगे, यहोवा की यही वाणी है।” (यशायाह 54:11-14,17)और फिर
“हे परमेश्वर, मेरा न्याय चुका और विधर्मी जाति से मेरा मुकद्दमा लड़; मुझ को छली और कुटिल पुरूष से बचा। क्योंकि हे परमेश्वर, तू ही मेरी शरण है, तू ने क्यों मुझे त्याग दिया है? मैं शत्रु के अन्धेर के मारे शोक का पहिरावा पहिने हुए क्यों फिरता रहूँ? अपने प्रकाश और अपनी सच्चाई को भेज; वे मेरी अगुवाई करें।” (भजन संहिता 44:1-3)हम अपनी स्वंय की सामर्थ के द्वारा अपने रहने की भूमि के अधिकारी नही होंगे, बल्कि परमेश्वर के दाहिने हाथ बैठे प्रभु यीशु मसीह के द्वारा ऐसा होगा। जैसे प्रेरित बताता है कि,
“जो मुझे सामर्थ्य देता है उसमें मैं सब कुछ कर सकता हूँ।” (फिलिप्पियों 4:13)हम स्वंय कुछ नही कर सकते है। यहां तक कि यीशु ने भी ऐसा ही कहा –
“मैं अपने आप से कुछ नहीं कर सकता।” (यूहन्ना 5:30)बिना परमेश्वर के हम कुछ नही है। यदि वे सब देश जो परमेश्वर को नही जानते है, वे बाल्टी में एक बूंद पानी के समान है – तो बिना परमेश्वर के हम क्या हो सकते है।
लेकिन हम उन देशों में नही है जो परमेश्वर को नही जानते है- हमें उन देशों से बाहर बुलाया गया है। हम उन लोगों में से नही है जो नाश होंगे, बल्कि हम उन लोगों में से है जिनको परमेश्वर रहने के लिए भूमि देगा।
कभी-कभी लोग संख्या के विषय में चिन्तित रहते है। पुराने दिनों में लोग पूछते होंगे कि, “भारत में कितने क्रिस्टडेलफियन्स है?” कुछ वर्षो तक उत्तर यही रहा होगा कि सात या आठ। “पूरे भारत में केवल आठ?” एक सन्देहास्पद प्रतिउत्तर मिलता होगा।
इतना आश्चर्य क्यों? क्या हम भीड़ के साथ जाना चाहते है – पवित्र शास्त्र साफ रीति से बताता है कि बड़ी भीड़ चौड़े रास्ते से विनाश की ओर जाती है। नूह के दिनों में पूरी पृथ्वी पर से केवल आठ को बचाया गया! भीड़ ने ही मसीह को क्रूस पर चढ़ाया।
दाऊद के समय में भी एक बड़ी भीड़ पहाड़ के एक तरफ, अपने अविश्वास के कारण, असहाय खड़ी थी। केवल एक दाऊद अकेला ही प्रभु के साथ था। योनातान और उसका हथियार ढोनेवाला, ये दो ही, प्रभु के साथ थे। परमेश्वर के साथ हम बड़े काम कर सकते है।
जकर्याह के 4वें अध्याय में हम पढ़ते है कि लोग जरूब्बाबेल के हाथों में होकर भूमि में वापिस आये और भवन के पुर्ननिर्माण की कोशिश कर रहे थे। बहुत से लोग हँस रहे थे और कह रहे थे कि ‘हम यह काम नही कर सकते है यह बहुत ही बड़ा काम है। हम या आप यह कैसे कर सकते है?’
इसलिए जकर्याह 4:6 कहता है, “न तो बल से” – अर्थात् मानवीय बल, मानवीय शक्ति से प्रभु के लिए भवन नही बन सकता है। परन्तु – “मेरे आत्मा के द्वारा होगा, मुझ सेनाओं के यहोवा का यही वचन है।”
हम अपने जीवन के द्वारा, या अपनी कलिसिया के द्वारा, अपने बल के द्वारा, अपनी निपुणता के द्वारा, अपनी बुद्धि या ज्ञान के द्वारा प्रभु का भवन नही बना सकते है - लेकिन जीवते परमेश्वर की आत्मा के द्वारा ऐसा हो सकता है।
“हे बड़े पहाड़, तू क्या है? जरूब्बाबेल के सामने तू मैदान हो जाएगा; और वह चोटी का पत्थर यह पुकारते हुए आयेगा, उस पर अनुग्रह हो, अनुग्रह!” (जकर्याह 4:7)इस संसार के शासकों को, झूठे मसीहियों और उनकी आराधना करने की रीतियों को, हमारी अपनी अभिलाषाओं की सामर्थ को, ये ‘पहाड़’, शत्रु, बहुत ही बड़े प्रतीत होते है। लेकिन यह संसार और इसकी राजनैतिक, धार्मिक और सामाजिक व्यवस्थायें, जो बहुत ही बड़ी प्रतीत होती है, ‘मैदान’ हो जायेंगी। वे अदृश्य हो जायेंगे। यीशु कहते है कि यदि आप विश्वास करते है तो, “इस पहाड़ से भी कहोगे, कि उखड़ जा, और समुद्र में जा पड़,तो यह हो जाएगा।” (मत्ती 21:21) इसलिए आपकी सामर्थ से नही बल्कि परमेश्वर की सामर्थ से वह हर चीज हट जायेगी जो परमेश्वर की इच्छा के पूरी होने में बाधा है।
जकर्याह के अध्याय 4 को यदि व्यवहारिक दृष्टि से देखें तो यह मलबे के एक दुर्गम ढेर का संदर्भ देता प्रतीत होता है। परमेश्वर की सहायता से यह मलबा साफ किया गया – उस स्थान को समतल किया गया - पत्थर लाये गये और उसको बनाना शुरू किया गया। - पद 9।
इस प्रकार प्रभु यीशु मसीह, जरूब्बाबेल है (जरूब्बाबेल, दाऊद की वंशावली में था और प्रभु यीशु मसीह का पूर्वज था - मत्ती 1:12,13) मसीह कोने के सिरे का पत्थर है, और प्रभु यीशु मसीह परमेश्वर की सामर्थ और कृपा से उस मन्दिर को पूरा करेंगे।
“क्योंकि किसने छोटी बातों का दिन तुच्छ जाना है? यहोवा अपनी इन सातों आखों से सारी पृथ्वी पर दृष्टि करके साहुल को जरूब्बाबेल के हाथ में देखेगा, और आनन्दित होगा।” (जकर्याह 4:10)हमें कौन कह सकता है कि हम छोटे है और इसलिए हमारी इस दुनिया में कोई गिनती नही है? परमेश्वर निर्माण कर रहा है और इसलिए इसमें कोई भी काटं छांट नही कर सकता है। परमेश्वर ने इसको निर्धारित किया है इसलिए कोई इसको बदल नही सकता। क्योंकि यह परमेश्वर की आत्मा के द्वारा उसके निवास स्थान के लिए एक पवित्र मन्दिर के रूप में बढेगा। (इफिसियों 2:21-22) परमेश्वर ने यह ठहराया है। और हम भी भजनकार के साथ कह सकते है कि, “यदि हमारी ओर यहोवा न होता” (भजन संहिता 124:1) तो हमारा सफाया हो गया होता! लेकिन यदि परमेश्वर हमारे साथ है तो हम सब कुछ कर सकते है।
और इसलिए हम भजन संहिता 18 में उन सब बातों के लिए दाऊद के आत्मविश्वास को देखते है जो परमेश्वर ने उसके जीवन में की थी:
- पद 33 “वही... बनाता है”
- पद 34 “वह... सिखाता है”
- पद 35 “तूने मुझ को दिया है”
- पद 36 “तूने मेरे लिए दिया है”
- पद 39 “तू ने ... दिया”
- पद 40 “तूने मेरे शत्रुओं की पीठ मेरी ओर फेर दी”
- पद 43 “तूने मुझे ... छुड़ाया”
दाऊद का आत्मविश्वास हमारा आत्मविश्वास है।
“यहोवा परमेश्वर मेरी ज्योति और मेरा उद्धार हैं; मैं किस से डरूँ? यहोवा मेरे जीवन का दृढ़ गढ़ ठहरा है, मैं किस का भय खाऊँ।” (भजन संहिता 27:1)“किस से” – काम पर अपने बॉस से, अपने प्रधानाध्यापक से, अपने पति/पत्नी से, अपने अविश्वासी सहकर्मी से, अपनी कलिसिया के किसी अभिमानी व्यक्ति से - हम किस से डरेंगे? किसी से नहीं! केवल स्वंय परमेश्वर से। क्योंकि जो परमेश्वर से डरते है उनके चारों ओर परमेश्वर के दूत छावनी किये रहते है।
हम परमेश्वर के विधान के विषय में एक साथ बात करते हुए अपने विषय के अन्त में आ गये है, लेकिन तौभी परमेश्वर के मार्गो पर एक साथ चलते हुए अपनी यात्रा के अन्त में नही पहुंचे है- इसलिए भजन संहिता 62 के ये पद इन मार्गो पर बने रहने में हमारी सहायता के लिए दिये गये है।
“हे हमारे उद्धारकर्ता परमेश्वर, हे पृथ्वी के सब दूर दूर देशों के और दूर के समुद्र पर के रहनेवालों के आधार, तू धर्म से किए हुए भयानक कामों के द्वारा हमें मुँह माँगा वर देगा; तू जो पराक्रम का फेंटा कसे हुए, अपनी सामर्थ्य से पर्वतों को स्थिर करता है; तू जो समुद्र का महाशब्द, उसकी तरंगों का महाशब्द, और देश देश के लोगों का कोलाहल शान्त करता है; इसलिए दूर दूर देशों के रहनेवाले तेरे चिन्ह देखकर डर गए है; तू उदयाचल और अस्ताचल दोनों से जय-जयकार कराता है।” (भजन संहिता 62:5-8)
“सचमुच नीच लोग तो अस्थाई, और बड़े लोग मिथ्या ही है; तौल में वे हल्के निकलते हैं; वे सब के सब साँस से भी हल्के हैं। अन्धेर करने पर भरोसा मत रखो, और लूट पाट करने पर मत फूलो; चाहे धन सम्पत्ति बढ़े, तौभी उस पर मन न लगाना।” (पद 9-10)
“परमेश्वर ने एक बार कहा है; और दो बार मैंने यह सुना है: कि सामर्थ्य परमेश्वर का है।” (पद 11)यदि सामर्थ परमेश्वर में है, तो मैं परमेश्वर की ओर रहना चाहता हूँ। हम परमेश्वर के लोग है क्योंकि उसने हमें अपने लोग होने के लिए बुलाया है इसलिए कोई भी ऐसा होने से नही रोक सकता है। उस अनन्त परमेश्वर, जिसकी ओर हम खड़े है, उसके मार्ग को कौन रोक सकता है?
“हम जानते है कि जो लोग परमेश्वर से प्रेम रखते है उनके लिए सब बातें मिलकर भलाई को उत्पन्न करती है अत: उनके लिए जो उसकी इच्छा के अनुसार बुलाये हुए है, क्योंकि जिन्हें उसने पहले से जान लिया है उन्हें पहले से ठहराता भी है कि उसके पुत्र के स्वरूप में हो! ताकि वह बहुत बातों में पहिलौठा ठहराये। फिर जिन्हें उसने पहले से ठहराया है उन्हें बुलाया भी; और जिन्हें बुलाया, उन्हें धर्मी भी ठहराता है और जिन्हें धर्मी ठहराता है उन्हें महिमा भी दी है, अत: हम इन बातों के विषय में क्या कहें? यदि परमेश्वर हमारी ओर है तो हमारा विरोधी कौन हो सकता है?” (रोमियों 8:28-31)यदि परमेश्वर हमें अपने राज्य में बुलाना चाहता है तो कौन परमेश्वर को ऐसा करने से रोक सकता है? परमेश्वर हमें अपने राज्य में स्थान देने के लिए इतना उत्सुक है कि उसने अपने पुत्र को हमारे लिए मरने के लिए भेजा।
“जिसने अपने निज पुत्र को भी न रख छोड़ा, परन्तु उसे हम सब के लिये दे दिया, वह उसके साथ हमें और सब कुछ क्यों न देगा? परमेश्वर के चुने हुओं पर दोष कौन लगाएगा? परमेश्वर ही है जो उनको धर्मी ठहरानेवाला है। फिर कौन है जो दण्ड की आज्ञा देगा? मसीह ही है जो मर गया वरन् मुर्दो में से जी भी उठा, और परमेश्वर के दाहिनी ओर है, और हमारे लिये निवेदन भी करता है। कौन हम को मसीह के प्रेम से अलग करेगा? क्या क्लेश, या संकट, या उपद्रव, या अकाल, या नंगाई, या जोखिम, या तलवार?” (रोमियों 8:32-35)‘अलग’ – न तो आपका कार्य, न आपका परिवार, न आपकी स्वार्थी भावनाऐं, आपको मसीह के प्रेम से अलग करने पायें। यदि परमेश्वर आपके साथ है और आप उससे प्रेम करते है तो, जब तक आप स्वंय न चाहे, कोई भी चीज आपको परमेश्वर के प्रेम से अलग नही कर सकती है। यदि आप उन बातों को स्वीकार करने की अनुमति देते है कि दूसरे आपको, या आपके बारे में क्या कहते है (आपको या आपके बारे में क्या लिखते है) और उन बातों को अपने दिल में जगह देकर एक कड़वाहट पैदा कर लेते है तो ऐसा करने के द्वारा आप परमेश्वर के प्रेम से अपने आपको दूर कर लेते है।
क्या ही अद्भुत बात है - प्रेरित कहता है कि, न मृत्यु, न जीवन, न सामर्थ, कुछ भी हमें परमेश्वर के प्रेम से अलग नही कर सकती है, और तौभी एक छोटी सी चीज - केवल एक टिप्पणी – जिसे हम अपने दिल में जगह दे देते है और यह बढ़ती जाती है, बढ़ती जाती है और प्रभु को हमसे ठीक ऐसा ही पूछना पड़ता है जैसे पतरस ने हनन्याह से पूछा, “शैतान ने तेरे मन में यह बात क्यों डाली है” (प्रेरितों के काम 5:2) हम स्वंय अलग होते है, हम परमेश्वर के मुखमंडल के तेज से मुड़ जाते है। हमारे लिए कोई भी व्यक्ति परमेश्वर से अधिक सामर्थशाली नही होना चाहिये, ताकि जो कुछ वे कहे या करे वह हमारे दिल में जगह न करें, ताकि हमारा स्वंय पर नियन्त्रण रहे और वे बातें हमें परमेश्वर के प्रेम से अलग न कर सकें। यदि हम परमेश्वर पर विश्वास करते है तो ये बाहरी बातें हमें उसके प्रेम से अलग नही कर सकती है।
“क्या क्लेश, या संकट, या उपद्रव, या आल, या नंगाई, या जोखिम, या तलवार?” (रोमियों 8:35)
“परन्तु इन सब बातों में हम उसके द्वारा जिसने हम से प्रेम किया है, जयवन्त से भी बढ़कर है। क्योंकि मैं निश्चय जानता हूँ कि न मृत्यु, न जीवन, न स्वर्गदूत, न प्रधानताएँ, न वर्तमान, न भविष्य, न सामर्थ्य, न ऊँचाई, न गहराई, और न कोई और सृष्टि हमें परमेश्वर के प्रेम से जो हमारे प्रभु मसीह यीशु में है, अलग कर सकेगी।” (रोमियों 8:37-39)क्योंकि अनन्त परमेश्वर हमारे साथ है और हम इस क्षण इस तुच्छ संसार के सामने एक अनन्त परमेश्वर के साथ खड़े है।
‘यदि परमेश्वर हमारे साथ है!’ (If God be for us!) is from ‘Caution! God at work’, by Tim Galbraith
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