तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है। भजन संहिता 119:105
चुनाव, चुनाव, चुनाव
(Choices, Choices, Choices)
आप जो भी कार्य करते है उसको करने के लिए आपको एक चुनाव करना होता है। और आपको हमेशा यह बात याद रखनी चाहिये कि जो चुनाव आप बनाते है, वह चुनाव आपको बनाता है।
हमारा सम्पूर्ण जीवन चुनाव से ही बनता है। प्राय: खुशी और दुख या एक हर्षित जीवन जीने के बीच में एक सही चुनाव करने का ही अन्तर होता है। अब्राहम लिंकन ने एक बार कहा कि, “अधिकांश लोग उतने ही खुश रहते है जितना खुश रहने का वे चुनाव करते है।” उसने बिल्कुल ठीक कहा था। यह बहुत ही अद्भुत है कि कितने ही लोग जब सुबह उठते है तो वे अपने आप से कहते है कि, “आज मैंने दुखी रहने का चुनाव किया है” इन लोगों का केवल मुंह देखकर ही आप बता सकते है कि इनका यही चुनाव था।
सिर्फ खुश रहने का चुनाव करने से अधिक महत्वपूर्ण यह है कि सही चुनाव करें; यह आपके जीवन और मृत्यु का सवाल हो सकता है। जब मूसा को इस्राएल की अगुवाई करने की चुनौती के लिए निर्धारित किया गया तो जीवन का मार्ग स्पष्ट था, उसने कहा, “मैं आज आकाश और पृथ्वी दोनों को तुम्हारे सामने इस बात की साक्षी बनाता हूँ, कि मैं ने जीवन और मरण, आशीष और शाप को तुम्हारे आगे रखा है; इसलिए तू जीवन ही को अपना ले, कि तू और तेरा वंश दोनों जीवित रहे।” (व्यवस्थाविवरण 30:19)
जीवन का चुनाव करना आसान रहा होगा लेकिन, वास्तव में, इस्राएलियों ने गलत चुनाव किया। जब वे मूसा और हारून पर बुड़बुड़ा रहे थे तो उन्होंने कहा, “भला होता कि हम मिस्र ही में मर जाते! या इस जंगल ही में मर जाते!” (गिनती 14:2)
बड़े दुख की बात है कि उनकी इच्छा पूरी हुयी। जो आप मांगते हो उसके विषय में सावधान रहिये, क्योंकि परमेश्वर आपको वह दे सकता है।
यहोशू ने, अपने जीवन के अन्त में, लोगों को एक चुनाव दिया। उसने स्वंय सही चुनाव किया और वह चाहता था कि लोग सही चुनाव करें, लेकिन वह उनको ऐसा करने के लिए नही समझा सका। परमेश्वर भी हमें अच्छा करने के लिए नही चुनेगा। यहोशू लोगों से निवेदन करते हुए कहता है कि, “और यदि यहोवा की सेवा करनी तुम्हें बुरी लगे, तो आज चुन लो कि तुम किस की सेवा करोगे, चाहे उन देवताओं की जिनकी सेवा तुम्हारे पुरखा महानद के उस पार करते थे, और चाहे एमोरियों के देवताओं की सेवा करो जिनके देश में तुम रहते हो; परन्तु मैं तो अपने घराने समेत यहोवा ही की सेवा नित करूँगा।” (यहोशू 24:15) इसके प्रतिउत्तर में “लोगों ने यहोशू से कहा, ‘हम तो अपने परमेश्वर यहोवा ही की सेवा करेंगे, और उसी की बात मानेंगे।’” (यहोशू 24:24) यह उनके लिए अच्छा चुनाव था और यह हमारे लिए भी अच्छा चुनाव है।
जैसे कि एक छोटा सा गीत भी कहता है कि, “चुनाव जो आप बनाते है वह आपको बनाता है” हम अपने जीवन में जितने भी चुनाव करते है, हम उन सबका योग है, फिर चाहे वे अच्छे चुनाव हो या बुरे। परमेश्वर ने हमें मुक्त इच्छा शक्ति दी है, और हम जिस मार्ग पर चलना चाहते है हम उसे चुन सकते है। उदाहरण के लिए यदि देखें तो, प्रत्येक सुबह जब हम उठते है तो यह हमारा चुनाव होता है कि हम उठे या फिर बिस्तर में ही लेटे रहे। सुबह बिस्तर से उठना निश्चय ही एक उचित चुनाव है।
एक पुरानी इब्री कहावत है कि, “अधिकांश लोग सफल होने के बजाय असफल हो जाते है तो उसका कारण यह है कि वे लोग वही व्यापार करते है जो वे उस समय सबसे अधिक चाहते है।” राजा दाऊद एक आलसी का वर्णन कुछ इस तरह से करता है, “कुछ और सो लेना, थोड़ी सी नींद, एक और झपकी, थोड़ा और छाती पर हाथ रखे लेटे रहना, तब तेरा कंगालपन राह के लुटेरे के समान और तेरी घटी हथियार बन्द के समान आ पड़ेगी।” (नीतिवचन 6:10) और “जैसे किवाड़ अपनी चूल पर घूमता है, वैसे ही आलसी अपनी खाट पर करवटें लेता है।” (नीतिवचन 26:14) इसलिए एक आलसी व्यक्ति जो बिस्तर से बाहर निकलकर जीवन का सामना करने के बजाय, करवट लेकर उस क्षण कुछ और सो लेने का चुनाव करता है जबकि उसको सबसे अधिक अपने जीवन में यह चाहना चाहिये कि वह उठे और प्रभु की सेवा करें। हमें प्रत्येक सुबह अपने दिन की शुरूआत एक उचित चुनाव से करनी चाहिये - सुबह उठे और मनन करें कि आज का यह दिन परमेश्वर ने बनाया है, और फिर आनन्द करें और उस दिन को एक अच्छा दिन बनाने का निश्चय करें।
यदि हमारे प्रतिदिन के चुनाव, हमारे विश्वास और परमेश्वर से हमारे प्रेम पर आधारित होंगे, तो हम निश्चय ही बाईबिल पढ़ने के लिए समय देंगे, मार्गदर्शन के लिए प्रार्थना करेंगे, दूसरों के लिए भले काम करेंगे, और साथ ही साथ हमारे जीवन में जिन सांसारिक कार्यो की आवश्यकता है उनको हम करेंगे।
दाऊद परमेश्वर से कहता है कि, “हे यहोवा, अपने मार्ग में मेरी अगुवाई कर” (भजन संहिता 27:11)। हमें भी परमेश्वर से सीखना चाहिये। प्रत्येक व्यक्ति को यह सौभाग्य प्राप्त नही होता है। दाऊद कहता है कि, “वह कौन है जो यहोवा का भय मानता है?” (भजन संहिता 25:12) और फिर वह कहता है कि, “यहोवा उसको उसी मार्ग पर जिस से वह प्रसन्न होता है चलाएगा।” (भजन संहिता 25:12)। यदि हम परमेश्वर से सीखना चाहते है तो हमें उसकी सेवा करने और उसकी आज्ञा मानने की अपनी इच्छा को और उसके डर को अपने चुनावों के द्वारा प्रकट करना होगा।
जो भी आप करते है उसमें आपको चुनाव करना होता है, तो इसलिए आपको हमेशा याद रखना चाहिये कि आप जो भी चुनाव बनाते है वह चुनाव आपको बनाता है।
‘चुनाव, चुनाव, चुनाव’ (Choices, Choices, Choices) is taken from ‘Minute Meditations’ by Robert J. Lloyd
अब्राहम और दाऊद से परमेश्वर की प्रतिज्ञाऐं
(God's promises to Abraham and David)
इस विश्व के लोगों के लिए परमेश्वर की क्या योजना है? क्या उद्धार के लिए विश्वास ही पर्याप्त है? अब्राहम और उसके वंशजो से की गयी परमेश्वर की प्रतिज्ञाऐं, पूराने और नये नियम को समझने की कुंजी है; ये परमेश्वर की योजना को समझने के लिए अति आवश्यक है।
मुख्य पद प्रेरितों के काम 26:1-23
इस दृश्य को चित्रित किजिये: कैसरिया के एक आधुनिक शहर की एक अदालत है। इस अदालत में तरसुस के रहने वाले पौलुस पर मुकदमा चल रहा है...
येरूशलेम के यहूदी चाहते है कि उसको मारा जाये। राजा अग्रिप्पा, उसकी पत्नी, और शहर के प्रसिद्ध व्यक्ति यह प्रतिक्षा कर रहे है कि पौलुस अपने बचाव में कुछ कहे।
पौलुस अपनी बात की शुरूआत राजा अग्रिप्पा की प्रसन्नसा से करता है:
“हे राजा अग्रिप्पा, जितनी बातों का यहूदी मुझ पर दोष लगाते है, आज तेरे सामने उनका उत्तर देने में मैं अपने को धन्य समझता हूँ, विशेष करके इसलिये कि तू यहूदियों के सब व्यवहारों और विवादों को जानता है। अत: मैं विनती करता हूँ, धीरज से मेरी सुन।” (प्रेरितों के काम 26:2-3)पौलुस का जीवन दाँव पर था। इसलिए उसके लिए यह अतिआवश्यक था कि वह साफ-साफ यह बताये कि यहूदी उसको क्यों मारना चाहते है। अपने बचाव में दो वाक्यों में वह बताता है कि उस पर मुकदमा क्यों चल रहा है:
“अब उस प्रतिज्ञा में आशा के कारण जो परमेश्वर ने हमारे बापदादों से की थी, मुझ पर मुकदमा चल रहा है।” (प्रेरितों के काम 26:6)ये प्रतिज्ञायें इतनी महत्वपूर्ण थी कि उनके कारण पौलुस पर मुकदमा चल रहा था। ये प्रतिज्ञायें आज भी इतनी ही महत्वपूर्ण है: हमारा अपना जीवन उन पर निर्भर है। इस बात को समझने के लिए कि ये प्रतिज्ञायें इतनी महत्वपूर्ण क्यों है, हमें उत्पत्ति की पुस्तक में उन प्रतिज्ञाओं को पढ़ना पड़ेगा जो परमेश्वर ने अब्राहम, इसहाक और याकूब से की थी।
अब्राहम से की गयी परमेश्वर की प्रतिज्ञायें
लगभग 4000 वर्षो पहले, परमेश्वर ने प्रतिज्ञाओं के द्वारा अपने आप को अब्राहम पर प्रगट किया और मानवजाति के उद्धार की अपनी योजना को प्रगट किया। यद्यपि ये आशीषें लम्बे समय पहले दी गयी थी, लेकिन ये सभी विश्वासियों के विश्वास का आधार है। हम आपको सलाह देंगे कि आप इन पदों को याद कर लें।
इन प्रतिज्ञाओं को ध्यानपूर्वक पढ़ें और निम्न प्रश्नों के विषय में विचार करें।
- उत्पत्ति 12:1-4- अब्राम से प्रतिज्ञा की गयी कि उसका वंश एक महान राष्ट्र होगा और सब लोग उसके द्वारा आशीष पायेंगे।
- अब्राम की राष्ट्रीयता क्या थी?
- उसने वह सब क्यों किया जो परमेश्वर ने उससे करने के लिए कहा?
- इस प्रतिज्ञा का क्या अर्थ है कि “पृथ्वी की सारी जातियां तेरे द्वारा आशीष पायेंगी”?
- क्या ये प्रतिज्ञायें पूरी हुयी?
- उत्पत्ति 13:14-17- परमेश्वर ने अब्राम और उसके वशंजों को एक भूमि सदासर्वदा के लिए देने की प्रतिज्ञा की।
- अब्राम को वह भूमि कब मिली?
- अब्राम के वंशज कौन है? (ध्यान से विचार कीजिये, बहुत से समूह है।)
- उत्पत्ति 15:5-6- अब्राम से उसके वंश को बहुत बढ़ाने की प्रतिज्ञा की गयी।
- परमेश्वर ने अब्राम को इतना धर्मी क्यों माना? (“धर्मी” होने का अर्थ क्या है?) देखें रोमियों 4:1-5।
- व्यक्तिगत रूप से यह सब आपके लिए इतना महत्वपूर्ण क्यों है?
- उत्पत्ति 15:17-21- प्रतिज्ञा की गयी भूमि स्पष्ट है।
- नक्शे पर इस क्षेत्र को खोजिये। बाईबल एटलस और आधुनिक एटलस की सहायता से इस क्षेत्र की तुलना आधुनिक इस्राएल से कीजिये।
- “वाचा” शब्द का क्या अर्थ है? (पद18)
- उत्पत्ति 17:3-8, 15-22- अब्राहम और सारा से एक पुत्र, इसहाक, की प्रतिज्ञा की गयी, जो अब्राहम का वारिस होगा। परमेश्वर अपनी प्रतिज्ञाओं को इस पुत्र के द्वारा पूरी करेगा।
- नीचे दिये गये शब्दों का क्या अर्थ है?
- अब्राम और अब्राहम
- परदेशी
- इसहाक (नोट: उत्पत्ति 17:17)
- परमेश्वर ने ऐसा क्यों कहा कि प्रतिज्ञायें इसहाक के द्वारा पूरी होगी, इश्माएल के द्वारा नही?
- क्या शान्ति स्थापित करने के लिए वर्तमान इस्राएल को वह भूमि अरब को वापिस दे देनी चाहिए?
- नीचे दिये गये शब्दों का क्या अर्थ है?
सारांश यह है कि अब्राहम से प्रतिज्ञा की गयी कि (1) उसका वंश बहुत बड़ा होगा, (2) उसके द्वारा सब जातियां आशीष पायेंगी, (3) उसे और उसके वंश को भूमि सदासर्वदा के लिए दे दी जायेगी।
जब सारा से प्रतिज्ञा किया हुआ पुत्र इसहाक पैदा हुआ उस समय अब्राहम की आयु 100 वर्ष और सारा की आयु 90 वर्ष थी। उत्पत्ति 17:17; 21:5 सैतीस वर्षो के बाद सारा मर गयी और उसको अब्राहम ने हेब्रोन में उस भूमि में दफनाया जो उसने हित्तियों से मोल ली थी (हालांकी परमेश्वर ने यह भूमि उसको देने की प्रतिज्ञा की थी) उत्पत्ति 23:1, 19-20 बाद में अब्राहम भी मर गया (175 वर्ष की आयु में) और उसको उसके पुत्रों ने सारा के साथ ही दफनाया। अत: अब्राहम और सारा ने अपने जीवनकाल में उस भूमि को प्राप्त नही किया जिसकी प्रतिज्ञा परमेश्वर ने उनसे की थी।
अब्राहम से की गयी प्रतिज्ञाओं का वारिस इसहाक हो गया, फिर उसके बाद उसका पुत्र याकूब (इस्राएल), फिर उसके बाद याकूब के 12 पुत्र और अतंत: एक हजार वर्षो के बाद राजा दाऊद।
दाऊद से परमेश्वर की प्रतिज्ञायें
दाऊद परमेश्वर से बहुत प्रेम करता था और वह परमेश्वर के लिए एक घर बनाना चाहता था, एक ऐसा घर जो उसके देवदारू के महल से भी अच्छा हो। दाऊद के धर्मी विचारों के कारण परमेश्वर ने दाऊद से प्रतिज्ञायें करके उसको आशीष दी। यद्यपि दाऊद का इरादा अच्छा था, तौभी परमेश्वर ने कहा “नही” – दाऊद एक योद्धा रहा था। परमेश्वर ने दाऊद से कहा कि वह उसके लिए एक शाही “घर” बनायेगा जो सदासर्वदा के लिए बना रहेगा।
“यहोवा तेरा घर बनाये रखेगा: जब तेरी आयु पूरी हो जायेगी, और तू अपने पुरखाओं के संग सो जाएगा, तो मैं तेरे निज वंश को तेरे पीछे खड़ा करके उसके राज्य को स्थिर करूँगा। मेरे नाम का घर वही बनावाएगा, और मैं उसकी राजगद्दी को सदैव स्थिर रखूँगा। मैं उसका पिता ठहरूँगा, और वह मेरा पुत्र ठहरेगा। यदि वह अधर्म करे, तो मैं उसे मनुष्यों के योग्य दण्ड से, और आदमियों के योग्य मार से ताड़ना दूँगा। परन्तु मेरी करूणा उस पर से ऐसे न हटेगी, जैसे मैं ने शाऊल पर से हटा ली थी और उसको तेरे आगे से दूर किया था। वरन् तेरा घराना और तेरा राज्य मेरे सामने सदा अटल बना रहेगा; तेरी गद्दी सदैव बनी रहेगी।” (2 शमूएल 7:11-16)परमेश्वर एक अक्षरस: घर (मकान) की बात नही कर रहा था, लेकिन एक राजवंश की जो दाऊद से आयेगा और जो अब्राहम से की गयी परमेश्वर की प्रतिज्ञाओं को पूरा होने के लिए एक वारिस देगा। दाऊद के वंश की यह प्रतिज्ञायें उसके पुत्र सुलैमान में आंशिक पूर्ण हुयी, लेकिन ये सम्पूर्ण रूप से उसके वंश यीशु में पूरी होगी।
अब्राहम के समान ही, परमेश्वर ने दाऊद से भी प्रतिज्ञायें की:
- उसका नाम महान होगा (2 शमूएल 7:9)
- उसके लोगों के लिए एक स्थान (2 शमूएल 7:10)
- उस भूमि में शान्ति और विश्राम (2 शमूएल 7:10)
- उसके बाद उसके निज वंश का स्थिर राज्य (2 शमूएल 7:12)
दाऊद से एक विशेष वंश की भी प्रतिज्ञा की गयी थी, वह वंश जिसके राज्य का कभी अंत नही होगा (2 शमूएल 7:13) सुलैमान का राज्य सदासर्वदा के लिए नही रहा, इसलिए हम जानते है कि परमेश्वर मसीह के विषय में बात कर रहा था। (देखें लूका 1:32-33)
आपके लिए परमेश्वर की प्रतिज्ञायें!
शुरू में ही हमने आपको बताया था कि पौलुस “बापदादों की आशा” के कारण पौलुस पर मुकदमा चलाया जा रहा था। यह “आशा” गलातियों के अध्याय 3 में संक्षिप्त रूप से बतायी गयी है।
“अब्राहम पर विचार किजिये: ‘उसने तो परमेश्वर पर विश्वास किया और यह उसके लिए धार्मिकता गिनी गई’ अत: यह जान लो कि जो विश्वास करनेवाले हैं, वे ही अब्रहम की सन्तान हैं। और पवित्रशास्त्र ने पहले ही से यह जानकर कि परमेश्वर अन्यजातियों को विश्वास से धर्मी ठहराएगा, पहले ही से अब्राहम को यह सुसमाचार सुना दिया कि ‘तुझ में सब जातियाँ आशीष पाएँगी।’ इसलिये जो विश्वास करनेवाले है, वे विश्वासी अब्राहम के साथ आशीष पाते है। ... और यदि तुम मसीह के हो तो अब्राहम के वंश ओर प्रतिज्ञा के अनुसार वारिस भी हो।” (गलातियों 3:6-9,29)पौलुस इस बात को समझ गया था कि विश्वास के द्वारा, यहूदी और गैरयहूदी, “अब्राहम की सन्तान” हो सकते है और प्रतिज्ञाओं के वारिस हो सकते है और प्रतिज्ञा किये गये राज्य का हिस्सा बन सकते है। यदि हम पौलुस के उदाहरण का अनुसरण करें, और परमेश्वर के द्वारा की गयी प्रतिज्ञाओं पर विश्वास करें तो हम परमेश्वर के राज्य में अनन्त जीवन पाने की प्रतिज्ञा की भी प्रतिक्षा कर सकते है।
सम्बन्धित पद
अब्राहम से की गयी प्रतिज्ञायें: | उत्पत्ति 12:1-4; 13:14-17; 15:5-6, 17-21; 17:3-8, 15-22; 18:18-19; 22:15-16 |
इसहाक और याकूब से की गयी प्रतिज्ञायें: | उत्पत्ति 26:3-4; 28:13-15; 35:11-12 |
दाऊद से की गयी प्रतिज्ञायें: | 2 शमूएल 7:4-29; 1 इतिहास 17:4-27; 2 इतिहास 6:1-10; यिर्मयाह 33:14-18 |
हम से सम्बन्धित प्रतिज्ञायें: | लूका 13:28; प्रेरितों के काम 3:25-26; 13:32-34; 26:6; रोमियों 4:16; 9:7-8; 15:8; गलातियों 3:7-29; 4:28; इफिसियों 2:12-13; 2 पतरस 1:3-4 |
अब्राहम की सन्तान: | लूका 3:8; 19:9; यूहन्ना 8:39; रोमियों 9:7-8; गलातियों 3:7, 27-29; 1 पतरस 3:6 |
सारांश
- अब्राहम, इसहाक और याकूब से एक महान राष्ट्र की प्रतिज्ञा की गयी। यह भी कि उसका असंख्य वंश होगा और सभी जातियां अब्राहम के द्वारा आशीष पायेंगी।
- परमेश्वर ने इन प्रतिज्ञाओं को दाऊद के साथ दोहराया और उनका विस्तार किया और मसीह का विशेष सन्दर्भ दिया।
- यीशु के सभी अनुयायी इन प्रतिज्ञाओं के वारिस है। वे सब मसीह के पुन: आगमन की और यीशु के द्वारा पृथ्वी पर सदासर्वदा के लिए स्थापित किये जाने वाले परमेश्वर के राज्य की प्रतिक्षा कर रहे है।
विचारणीय पद
- अब्राहम और दाऊद दोनों ने पाप किया: हम जानते है कि अब्राहम ने झूठ बोला और दाऊद ने हत्या और व्यभिचार किया। तो फिर किस प्रकार परमेश्वर ने उनको धर्मी गिना?
- अब्राहम को वह भूमि कब मिलेगी जिसकी प्रतिज्ञा परमेश्वर ने उसको देने के लिए की थी?
अन्य खोज
- अरब राष्ट्रों का विश्वास है कि येरूशलेम देने की प्रतिज्ञा उनके लिए थी, क्योंकि उनका विश्वास है कि अब्राहम से की गयी प्रतिज्ञायें इसहाक के द्वारा नही बल्कि इश्माएल के द्वारा पूरी होंगी। बाईबिल से इस बात को सिद्ध करें कि उनका यह विश्वास गलत है।
- लूका 1:26-80 को पढ़ें। अब्राहम और दाऊद से की गयी प्रतिज्ञाओं के पदों की एक सूचि बनाईये।
‘दाऊद से परमेश्वर की प्रतिज्ञाऐं’ (God's promises to Abraham) is from ‘The Way of Life’, edited by R. J. Hyndman
यदि परमेश्वर हमारे साथ है! (भाग-1)
(If God be for us! - Part 1)
हम परमेश्वर के विधान के अपने अन्तिम अध्ययन में पहुंच गये है। यद्यपि इस विशेष समय में हमने परमेश्वर के कार्यो के विषय में काफी निकटता से विचार किया; यह सही है कि हम वास्तव में अपने आप को, परमेश्वर के विधान के आने वाले दिनों के लिए तैयार कर रहे है। परमेश्वर के विधान के विषय में सोचना एक बात है और उसमें जीना अलग बात है। अपने पहले अध्ययन में हमने इस बात पर जोर दिया था कि परमेश्वर सर्वशक्तिमान है। हमारे लिए ये बात समझना थोउ़ा मुश्किल है क्योंकि वह हर एक चीज जिसके विषय में हम सोच सकते है उन सबकी एक माप है, एक सीमा है।
जब हम सामर्थ के बारे में सोचते है तो हम तुलनात्मक रूप से सोचते है – कि दो में से कौन सी चीज अधिक सामर्थशाली है या अधिक ताकतवर है। हम सामर्थ को मापते है- चाहे वह विद्युत हो चाहे सैन्य सामर्थ हो या चाहे कुछ और चीज हो, हम इनको गिनती में या उनकी क्षमता आदि में मापते है। इसलिए जब हम परमेश्वर की सामर्थ के विषय में बात करते है तो सर्वशक्ति को समझने के लिए प्रत्येक अभिव्यक्ति अपर्याप्त है। बाईबिल यशायाह के अध्याय 40 में इसको अभिव्यक्त करने का प्रयास करती है, जहां हम पद 15 से आगे के पदों में “सर्वशक्ति” के वर्णन को देखते है:
“सारी जातियाँ उसके सामने कुछ नहीं है, वे उसकी दृष्टि में लेश और शून्य से भी घट ठहरी हैं।” (यशायाह 40:17)बाईबिल हमें परमेश्वर की महानता को बताने का प्रयास कर रही है। आपके पास “कुछ भी न होने से कम” कैसे हो सकता है? जो चीज समझ से परे है – हमारे परमेश्वर की विशालता, उसको समझाने का, यह बाईबिल का अपना तरीका है। यह समझ से परे है लेकिन तौभी यह सत्य है - परमेश्वर सर्वशक्तिमान है। हम लोग जो सीमित है, हमारे लिए यह सोचना और विश्वास करना बहुत मुश्किल होता है कि हम इस सीमित संसार में अनन्तता की ओर है। यह बात तर्क के द्वारा, वैज्ञानिक ज्ञान के द्वारा या बढ़ती आयु के ज्ञान के द्वारा समझी नही जा सकती है। यह विश्वास है क्योंकि यह परमेश्वर के विषय में है।
अपनी सीमितत्ता और सीमाओं के कारण हमारा झुकाव अपने परमेश्वर को छोटा करने की ओर रहता है। इसलिए हम भजनसंहिता 34 में पढ़ते है: “मेरे साथ यहोवा की बड़ाई करो” (भजन संहिता 34:3) अपनी सोच और विचारों में परमेश्वर को बड़ा बनाईये - इतना बड़ा की उसकी तुलना में कुछ भी नही है।
कुछ ऐसी चीजें है जिनके विषय में हम सोचते है कि उनमें सामर्थ है। प्रेरितों के काम 8:10 में शमौन को पढते है। सामरिया के लोग सोचते थे कि इस व्यक्ति के पास सामर्थ है, जबकि वह चालबाज था। यह बात कोई एक या दो व्यक्ति नही सोचता है बल्कि पूरा सामरिया ऐसा मानता था कि इस व्यक्ति के पास “परमेश्वर से मिली बहुत ही बड़ी सामर्थ” है। यह कुछ भी नही था। जब इस व्यक्ति ने परमेश्वर की सामर्थ को देखा तो उसने चालबाजी छोड़ दी और एक सच्चे और सर्वशक्तिमान परमेश्वर के पीछे चल दिया क्योंकि वह जानता था कि जो जादू वह करता था वह कुछ नही था।
हम जानते है कि हमारे चारों ओर उपस्थित मूर्तियां कुछ नही है। लेकिन केवल अन्धविश्वास ने लोगों के दिलोदिमाग पर कब्जा किया हुआ है। किसी चीज में कोई सामर्थ नही है, बल्कि केवल हमारे विश्वास में है। हमें जब कभी भी अवसर मिलता है तो हम यह सोच लेते है कि परमेश्वर के अलावा भी किसी अन्य चीज में सामर्थ है। लोग इस विषय में बात करते है कि भाग्यशाली नम्बर, रंग या कोई अंगूठी या चूड़ी या अन्य दूसरी चीजें है जिनमें सामर्थ होती है और ये भाग्यशाली होती है, जबकि ऐसा कुछ नही है यह केवल अन्धविश्वास है। स्वंय मनुष्य की शारीरिक सामर्थ के अतिरिक्त केवल एक ही सामर्थ है और वह है परमेश्वर की सामर्थ।
हमें सत्य को जानना है कि केवल परमेश्वर ही है जो सामर्थशाली है। (रोमियों 14) और सत्य हमें आजाद करेगा (यूहन्ना 8:31-32) – अन्धविश्वास से आजादी। आईये हम इस बात को निश्चित करें कि हम आजाद है - अर्थात इस तरह के विचारों से आजाद है कि परमेश्वर के अलावा भी कोई सामर्थ है।
हमें केवल परमेश्वर की सामर्थ में रूचि है क्योंकि केवल यही एक सामर्थ है। हम वे है “जिनकी रक्षा परमेश्वर की सामर्थ से” की जाती है। (1 पतरस 1:5) किस प्रकार परमेश्वर की सामर्थ के द्वारा हमारी रक्षा की जाती है? - पतरस कहता है हमारे “विश्वास” के द्वारा। जब तक हम विश्वास नही करते, जब तक हम यह विश्वास नही करते कि परमेश्वर सर्वशक्तिमान है, तब तक वह सामर्थ हमारे लिए कुछ नही है। हमें विश्वास करना चाहिये।
योनातान और दाऊद के जीवन के उदाहरण के द्वारा हम इस सिद्धान्त को सीखते है कि किस प्रकार परमेश्वर अपनी सामर्थ के द्वारा रक्षा करता है। उन्होंने अपने जीवन में बार बार इस बात को प्रदर्शित किया कि परमेश्वर की सामर्थ के द्वारा उनकी रक्षा हुयी – ‘यदि परमेश्वर हमारी ओर है, तो हमारा विरोधी कौन हो सकता है।’
1 शमूएल के 13 अध्याय में योनातान की कहानी है। पद 2 में हम देखते है कि शाऊल अपने आप को संगठित करता है। मिकमाश में वह अपने साथ दो हजार पुरूषों को लेता है और योनातान के साथ गिबा में एक हजार पुरूष होते है। पद 3 में योनातान ने गिबा में पलिश्तियों की चौकी को मार लिया। शाऊल ने कुछ नही किया लेकिन पद 4 में वह पूरा श्रेय लेता है। लेकिन वह काम करने के लिए तैयार नही था, क्योंकि उसको विश्वास नही था।
7वें पद से अध्याय 14 के शुरू होने तक, शाऊल ने गिलगाल के पूर्व में आश्रय लिया, शाऊल बचे हुए छ: सौ लोगों के साथ गिबा में योनातान से मिला। शाऊल पूरी तरह से असहाय हो गया है- परमेश्वर की सामर्थ में विश्वास की कमी के कारण उसने अपने आप को अपंग कर लिया था, जबकि योनातान अपने विश्वास में डूबा हुआ कार्य करना चाहता था। वह परमेश्वर के शत्रुओं के सामने कांपता हुआ असहाय बैठने वाला नही था।
शाऊल झाल पर एक पेड़ के नीचे बैठा हुआ है, और वह परिस्थितयों से जितना दूर जा सकता है जाने का प्रयास कर रहा है। जिस वृक्ष के नीचे वह बैठा है उस अनार के वृक्ष के द्वारा उसको यहोवा की महिमा सिखायी जानी चाहिये थी, सच्चा परमेश्वर भीड़ में भी प्रगट होने वाला परमेश्वर है वह सेनाओं का यहोवा है, क्योंकि परमेश्वर हमें उस अनार के वृक्ष के विषय में बताता है। वेदी की रचना में अनार, परमेश्वर की उपस्थिति और उसकी परिपूर्णता को प्रदर्शित करता है, यह एक ऐसा फल है जिसमें असंख्य बीज होते है। याजक के कपड़ों को इससे सजाया जाता था, जो यह प्रदर्शित करता था कि परमेश्वर के द्वारा नियुक्त याजक के कार्यो के द्वारा एकमात्र सच्चा परमेश्वर भीड़ में अपने आप को प्रगट करता है। शाऊल ने ब्रहमाण्ड के इस परमेश्वर की उपस्थिति को भूला दिया, इस्राएल का परमेश्वर तभी उनके साथ था यदि वे उस पर विश्वास करते थे।
(कृपया ध्यान दें: क्या आपने कभी ध्यान दिया है कि अनार के अन्दर बीजों के एक समूह को दूसरे समूह से अलग करने वाली परत बहुत ही कड़वी होती है। क्या यह परमेश्वर के लोगों के बीच के विभाजन के विषय में कुछ सिखाती है?)
पद 3 में हमें एक संकेत दिया गया है, कि परमेश्वर ने शाऊल और उसके लोगों को, उनके विश्वास की कमी के कारण छोड़ दिया। यहोवा योनातान के साथ था क्योंकि उसको परमेश्वर पर विश्वास था। वह परमेश्वर का भय मानता था और इसलिए परमेश्वर का दूत उसके साथ था। मुझे लगता है कि पद 3 में “ईकाबोद के भाई” का वर्णन जानबूझकर किया गया है। यहां भाई का नाम क्यों शामिल किया गया है, क्योंकि इस नाम का अर्थ है “महिमा से रहित”। याद रखिये कि पलिश्तियों ने युद्ध जीता (1 शमूएल 4)? परमेश्वर का सन्दूक ले लिया गया और एली की बहू ने एक बच्चे को जन्म दिया – और बच्चे को जन्म देते हुए जब वह मर रही थी तो उसने बच्चे का नाम “ईकाबोद” रखा जिसका शाब्दिक अर्थ है “महिमा रहित” और निश्चय ही शाऊल के साथ महिमा नही थी क्योंकि वह डर से कांपता हुए असहाय एक अनार के वृक्ष के नीचे बैठा था।
योनातन उत्साहित था और कार्य कर रहा था।
“तब योनातान ने अपने हथियार ढोनेवाले जवान से कहा, ‘आ, हम उन खतनारहित लोगों की चौकी के पास जाएँ; क्या जाने यहोवा हमारी सहायता करे; क्योंकि यहोवा के लिये कोई रूकावट नहीं, कि चाहे तो बहुत लोगों के द्वारा चाहे थोड़े लोगों के द्वारा छुटकारा दे।’” (1 शमूएल 14:6)उसके द्वारा कहे गये “खतनारहित” शब्द पर ध्यान दीजिये। योनातान की बात सीधी थी - वह और उसका हथियार ढोनेवाला खतना वाले थे - अर्थात वाचा किये गये लोग - अर्थात अब्राहम से की गयी वाचा की मुहर वाले लोग कि भूमि उसके वंशजों को दी जायेगी (उत्पत्ति 17)। यहां खतनारहित शत्रु है जिन्होंने उस भूमि को ले लिया है। योनातान की परिस्थिति बिल्कुल स्पष्ट है। उसके साथ सर्वशक्तिमान ईश्वर की अमर आत्मा है - क्योंकि वे शारीरिक नही है - उन्होंने शरीर को काट दिया है - केवल खतने के द्वारा नही - शारीरिक बातों को त्यागकर अपने हद्वय के सच्चे खतने के द्वारा। पलिश्ती शरीर की अवस्था में है। इसलिए यह आत्मा और शरीर के बीच का सदियों पुराना युद्ध है। परमेश्वर को संख्या से कोई फर्क नही पड़ता है। परमेश्वर को किसी युद्ध के लिए बहुसंख्या में लोगों की आवश्यकता नही है। परमेश्वर ने एक आदमी के द्वारा इस संसार को अपने लिये छुड़ा लिया है। एक विश्वासी व्यक्ति परमेश्वर के लिए कुछ भी कर सकता है।
योनातान ने परमेश्वर की सामर्थ को अपना नही समझा - वह कहता है “हो सकता है”, कि परमेश्वर हमारे लिए कार्य करें। हमारे समान ही योनातान भी प्रत्येक परिस्थिति में परमेश्वर की इच्छा को नही जानता था। हम जानते है कि परमेश्वर सामर्थशाली है – परमेश्वर में हमारी बीमारी को चंगा करने की सामर्थ है – परमेश्वर में हमारे कष्टों को दूर करने की सामर्थ है – लेकिन हो सकता है कि वह उस सामर्थ को ऐसा करने के लिए प्रयोग न करें। यह हो सकता है कि वह अपनी उस सामर्थ को समस्याओं को लाने के लिए प्रयोग करें।
इसलिए योनातान उचित ही कहता है कि, यह परमेश्वर पर निर्भर है कि वह हमें इस समय इस समस्या से छुटकारा देना चाहता है या नही। यदि वह चाहता है तो वह यह कर सकता है। उसके हथियार ढोने वाले के उत्तर पर भी ध्यान दीजिये - “मैं तेरी इच्छा के अनुसार तेरे संग रहूंगा” (पद 7)।
यह एक वफादार हथियार ढोनेवाला था जो योनातान और परमेश्वर दोनों के प्रति विश्वासयोग्य था। दूसरे लोगों ने उसको कहा होगा कि, “तुम पागल हो – हजारों लोगों के सामने दो लडेंगे!” योनातान एक बुद्धिमान व्यक्ति था जो अपने मित्रों, साथियों का चुनाव ध्यानपूर्वक करता था - निश्चय ही उनमें से दो को हम जानते है - एक तो यह हथियार ढोनेवाला और दूसरा दाऊद। हमें भी ऐसा ही करना चाहिये। यह बहुत ही अच्छी बात है यदि हमारे पास हर एक परिस्थिति में हमारे भाईयों और बहनों और बुद्धिमान मित्रों की सहायता हो।
हम भी एक युद्ध में है – असीमित के साथ सीमितता का युद्ध। आत्मा के विरूद्ध देह का युद्ध। यह युद्ध कैसे हो सकता है! पलिश्ती कैसे खड़े हो सके? इन दोनों लोगों ने पूरी चौकी को नाश कर दिया। परमेश्वर है और वह कार्य करता है, और पद 15 में “भुईडोल हुआ” परमेश्वर योनातान के साथ खड़ा हुआ क्योंकि योनातान ने कार्य किया। धरती को हिलाने के लिए और अपने लोगों को विजयी करने के लिए परमेश्वर वहां था।
“हियाव बाँधो और दृढ़ हो, तुम न तो अश्शूर के राजा से डरो और न उसके संग की सारी भीड़ से, और न तुम्हारा मन कच्चा हो; क्योंकि जो हमारे साथ है, वह उसके संगियों से बड़ा है। अर्थात् उसका सहारा तो मनुष्य ही है; परन्तु हमारे साथ, हमारी सहायता और हमारी ओर से युद्ध करने को हमारा परमेश्वर यहोवा है। इसलिए प्रजा के लोग यहूदा के राजा हिजकिय्याह की बातों पर भरोसा किए रहे।” (2 इतिहास 23:7-8)लोगों ने इन बातों पर “भरोसा” किया – शाब्दिक रूप से “अपने आप को इन बातों से ढ़ाप लिया”। उन्होंने इस बात पर भरोसा किया। और इसलिए भाईयों और बहनों हमें भी भरोसा करना चाहिये। हमारे साथ वह है जो इस संसार के समस्त शत्रुओं से शक्तिशाली है, हमारे साथ इस संसार के सभी विरोधो से अधिक शक्तिशाली सामर्थ है - इस प्रकार यह हमेशा मापने योग्य है। यह हो सकता है कि हमारे विरोध में 50000 लाख लोग हो – लेकिन यह एक सीमित संख्या है - इसकी एक सीमा है, परन्तु अनन्तता की कोई सीमा नही है। 77000 लाख लोग डोल की एक बूंद के बराबर है (यशायाह 40:15)। अनन्त के सामने आप किसी चीज को नही माप सकते है। परमेश्वर अनन्त है। यह अदभुत है कि दाऊद और योनातान इतने गहरे मित्र हो गये क्योंकि वे एक ही विश्वास की दुनिया में थे।
1 शमूएल के 17 वे अध्याय में – दाऊद, गोलियत को मारता है। यह एक सीधा युद्ध था। युद्ध की शर्ते उचित है - जीतने वाला सर्वशक्तिमान और उसकी सेवा।
“वह खड़ा होकर इस्राएली पाँतियों को ललकार के बोला, ‘तुम ने यहाँ आकर लड़ाई के लिये क्यों पाँति बाँधी हैं? क्या मैं पलिश्ती नहीं हूँ, और तुम शाऊल के अधीन नहीं हो? अपने में से एक पुरूष चुनो, कि वह मेरे पास उतर आए। यदि वह मुझ से लड़कर मुझे मार सके, तब तो हम तुम्हारे अधीन हो जाएँगे; परन्तु यदि मैं उस पर प्रबल होकर मारूँ, तो तुम को हमारे अधीन होकर हमारी सेवा करनी पड़ेगी।’” (1 शमूएल 17:8-9)यदि इस संसार के पलिश्तियों में अधिक शक्ति है तो आओ हम उसके साथ हो लें। लेकिन यदि अधिक शक्ति इस्राएल के परमेश्वर में है तो आओ हम उसके साथ रहे। हमें यह चुनाव करना है कि सामर्थ कहाँ है? जैसा कि ऐलिय्याह ने अपने समय के लोगों से कहा; “यदि यहोवा परमेश्वर हो, तो उसके पीछे हो लो; और यदि बाल हो, तो उसके पीछे हो लो” चुनाव करो। (1 राजा 18:21)
गोलियत ने चुनौती दी – “मैं आज के दिन इस्राएली सेना को ललकारता हूं” (1 शमूएल 17:10) इस्राएल का अर्थ क्या है? – सर्वशक्तिमान के राजकुमार। वह सर्वशक्तिमान के राजकुमारों की सेना को कैसे ललकार सकता था – वह केवल एक देह था!
पद 11 में शाऊल निराश है वह भी इस समय शारीरिक मनुष्य है। और शाऊल की देह उतनी ही बड़ी थी जितनी वह थी, गोलियत जितनी बड़ी नही थी!
लेकिन पद 26 में दाऊद स्थिति को साफ करता है, जैसे योनातान ने पहले किया था। “वह खतनारहित पलिश्ती क्या है कि जीवित परमेश्वर की सेना को ललकारे?” (पद 26)
दाऊद अपने साथी सैनिकों से कहता है कि, “इस मनुष्य की पृथ्वी के परमेश्वर से कोई वाचा नही है। तुम सब खतना किये हुए हो - अनन्त परमेश्वर के साथ तुम लोगों की वाचा है। तुम सब इससे क्यों डरते हो?”
शाऊल के समान गोलियत इसको शरीरिक युद्ध के रूप में देख रहा था। पद 44 में गोलियत चिल्लाकर कर कहता है, “मैं तेरा मांस आकाश के पक्षियों और बनपशुओं को दे दूंगा” वह दाऊद के शरीर को देखता है। वह उसकी ओर बढ़ते हुए केवल उसके शरीर को देखता है - वह सोचता है कि इस छोटे से मांस के टुकड़े को नष्ट करके काम खत्म हो जायेगा। लेकिन यह केवल अपने शरीर की सामर्थ में चल रहा कोई नवयुवक नही था। गोलियत जीवते परमेश्वर को दाऊद के साथ नही देख सका। सम्पूर्ण ब्रहमाण्ड की सामर्थ उस समय वहां थी लेकिन गोलियत उस सामर्थ को नही देख सका। वह शारीरिक अवस्था में था और शारीरिक अवस्था में कोई आत्मिक चीजों को नही देख सकता, जैसे की पौलुस भी 1 कुरिन्थियों 2:14 में लिखता है, “परन्तु शारीरिक मनुष्य परमेश्वर के आत्मा की बातें ग्रहण नहीं करता, क्योंकि वे उसकी दृष्टि में मूर्खता की बातें है, और न वह उन्हें जान सकता है क्योंकि उनकी जाँच आत्मिक रीति से होती है।”
और इस प्रकार दाऊद अपने बड़े पुत्र, मसीह, के कार्य को बहुत ही सुन्दर रीति से पूरा करता है। गोलियत को मारना सर्प के वंश को कुचलना है। सिर अर्थात माथे को कुचला गया। आज हमारे शारीरिक विचार वह सर्प का वंश है - इन शारीरिक विचारों को मसीह ने अपने वश में किया, क्योंकि “क्योंकि शरीर पर मन लगाना तो परमेश्वर से बैर रखना है” (रोमियों 8:7) हमारे शारीरिक विचारों को हमें मारना चाहिये; ताकि अन्त में प्रकाशितवाक्य 14:1 सत्य ठहरे – “पिता का नाम हमारे माथे पर लिखा जाये।”
गोलियत ने केवल उन चीजों के विषय में सोचा जिनको वह देख सकता था। लेकिन महत्वपूर्ण यह नही है जो देखा जा सकता है, लेकिन वह जो अनदेखा है, और वह आत्मा की चीजें है। (2 कुरिन्थियों 4:18)
“दाऊद ने पलिश्ती से कहा, “तू तो तलवार और भाला और साँग लिये हुए मेरे पास आता है; परन्तु मैं सेनाओं के यहोवा के नाम से तेरे पास आता हूँ, जो इस्राएली सेना का परमेश्वर है, और उसी को तू ने ललकारा है।” (1 शमूएल 17:45)इसलिए स्थिति स्पष्ट है कि यह युद्ध शारीरिक बनाम आत्मिक है।
“किसी को रथों का, और किसी को घोड़ो का भरोसा है, परन्तु हम तो अपने परमेश्वर यहोवा ही का नाम लेंगे।” (भजन संहिता 20:7)दाऊद को मनुष्यों के बनाये हुए हथियारों पर भरोसा नही था।
हमारी इच्छा है कि अनन्त परमेश्वर हमारे जीवनों में विराजमान हो - हमारा युद्ध देह के साथ नही है, या शारीरिक हथियारों के साथ नही है।
“क्योंकि यद्यपि हम शरीर में चलते फिरते हैं, तौभी शरीर के अनुसार नहीं लड़ते। क्योंकि हमारी लड़ाई के हथियार शारीरिक नहीं, पर गढ़ों को ढा देने के लिये परमेश्वर के द्वारा सामर्थी है।” (2 कुरिन्थियों 10:3-4)गढ़ क्या है? यह मिकमाश के पथरीले रास्तें पर बनी पलिश्तियों की चौकियां नही है, लेकिन पुराने विचारों की चौकियां है। ऐसे बहुत से विचार है जिन्होंने हमारे मस्तिष्क में गढ़ बनाया हुआ है, ठीक एक सेना की तरह जब वे खोदकर अपना गढ़ बनाते है। आप जानते है कि जब भी सेना के पास समय होता है तो वह अपने आप को खोदकर दबाती है - अर्थात अपनी रक्षा के लिए खोदकर गढ्ढा बनाती है।
सेना की छावनी को उनकी बनाई खाई से हटाना बहुत ही कठिन होता है। इसलिए यदि हम शारीरिक विचारों को अपने मस्तिष्क में समय देते है, (मसीह के समान नही जिन्होंने इन विचारों को त्याग दिया था), तो वे गढ़ बना लेते है और अपने आप को सुरक्षित कर लेते है और फिर उनको निकालना बहुत ही कठिन होगा। लेकिन हम ऐसा कर सकते है जैसा 2 कुरिन्थियों 10:5 बताता है कि, कल्पनाओं का और हर एक ऊँची बात का, जो परमेश्वर की पहिचान के विरोध में उठती है, हम उनका खण्डन करें और परमेश्वर की सामर्थ से उनको कैद करें। परमेश्वर में विश्वास करने से मिलने वाली परमेश्वर की सामर्थ हमें “हर एक भावना को कैद करके मसीह का आज्ञाकारी बना देती है।”
अब यह एक बड़ा काम है कि अपने हर एक विचार, तुम्हारे हर एक विचार, को मसीह का आज्ञाकारी बना दें। हम जानते है कि हमारा मस्तिष्क कैसा है – ये विचार इसमें यहां, वहां और हर जगह है- हमारे विचार बहुत ही तीव्र है। उनको नियन्त्रित करना और मसीह की आज्ञाकारिता में लाना एक बड़ा काम है। और आप और मैं यह नही कर सकते है। हम किसी साधु के समान हिमालय की चोटियों पर तपस्या करके ऐसा नही कर सकते है; “मैं कुछ बुरा नही सोचूंगा”; “मैं अपने मन को बुरे विचारों से साफ रखूंगा”; “मैं केवल एक ही बात पर विचार करूंगा” सबकुछ इसके विपरीत होता है। हमें अनचाहे विचारों को परमेश्वर के विचारों से बदलना चाहिये, जैसा कि यीशु ने बुरे मन वाले एक व्यक्ति के दृष्टान्त में बताया। (लूका 11:26)
प्रियों यही हमारी वास्तविक स्थिति है। हम भारत की, अमेरिका की, अफ्रीका की, पहाड़ी पर खड़े है और केवल हम ही है और अनन्त पिता परमेश्वर हमारे साथ है। और वहां से बाहर सभी शारीरिक लोग है, जिनमें सामर्थ नही है, जिनमें कुछ भी सामर्थ नही है। हम अनन्त परमेश्वर के साथ खड़े है और हम चिल्लाकर कहते है - “यदि परमेश्वर हमारी ओर है, तो हमारा विरोधी कौन हो सकता है?”
लेकिन इसके विपरीत भी सत्य है – “यदि परमेश्वर हमारे विरोध में है तो कौन हमारे साथ हो सकता है?” यदि हम परमेश्वर की ओर से अपना मुहं मोड़ लेते है और परमेश्वर हमारे विरोध में होता है तो कौन हमें बचा सकता है? लेकिन हम परमेश्वर से मुंह मोड़ना नही चाहते है, क्या हम चाहते है? हम ऐसा नही होना चाहते है जैसा हम 2 कुरिन्थियों के 25वें अध्याय में पढ़ते है।
“यदि तू जाकर पुरूषार्थ करे; और युद्ध के लिए हियाव बाँधे तौभी परमेश्वर तुझे शत्रुओं के सामने गिराएगा, क्योंकि सहायता करने और गिरा देने दोनों में परमेश्वर सामर्थी है।” (2 इतिहास 25:8)
‘यदि परमेश्वर हमारे साथ है!’ (If God be for us!) is from ‘Caution! God at work’, by Tim Galbraith
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