तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है। भजन संहिता 119:105
सम्पादकीय
प्रिय पाठको इस नयी पत्रिका `दीपक´ के लिए आपका स्वागत है, और आशा है कि यह पत्रिका परमेश्वर के राज्य की ओर जाने वाले मार्ग में आपको ले जाने के लिए आपके पांव के लिए दीपक की तरह कार्य करेगी। क्योंकि परमेश्वर के वचन (बाईबिल) में लिखा है कि ``तेरा वचन मेरे पांव के लिए दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है।´´ (भजंन सहिंता 119:105)
इस तिमाही पत्रिका का उद्देश्य, परमेश्वर के वचन `बाईबिल´ को खोजना और परमेश्वर के विषय में, परमेश्वर के पुत्र यीशु मसीह के विषय में, और भविष्य में परमेश्वर की इस संसार के लिये योजना के विषय में और अधिक सीखना है। और साथ ही इन सब बातों का अब हमारे लिए क्या अर्थ है, इसको समझने के लिए भी कुछ विचारणीय लेखों को सिम्मलित किया गया है।
इस अंक में हम परमेश्वर के विषय में बातें करेगें और इस बात पर विचार करेगें कि हम अपना कार्य करते हुए और इस कार्य के द्वारा कैसे प्रसन्न रह सकते है।
अनन्त जीवन का पुरूस्कार देने का जो वायदा परमेश्वर ने हमसे किया है, उसको हम किस प्रकार पा सकते है, इस विषय में और अधिक जानने के लिए हमारी इस उत्तेजक यात्रा में आप हमारे साथ बने रहिये।
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कार्य करते हुए प्रसन्न रहना
हाल ही में हमने एक बहुत ही रूचिकर लेख पढ़ा जिसका शीर्षक था ``कार्य करते हुए कैसे प्रसन्न रहे।´´ हम सभी यह जानते है कि जीवित रहने के लिए कार्य करना आवश्यक है। यह बात हम पौलुस के द्वारा दी जाने वाली शिक्षा में भी पाते है जब वह कहता है ``इसलिए जब हम तुम्हारे साथ थे, हमने तुम्हें यह आदेश दिया था: `यदि कोई काम न करना चाहे तो वह खाना भी न खाये।´ ´´
एक बात जो आसानी से भूला दी जाती है कि कार्य करने का अर्थ केवल उसे समाप्त करना होता है, जबकि इसका अन्त नहीं है। हम इसलिए कार्य करते है क्योंकि हमें भोजन की आवश्यकता होती है। आजकल बहुत सी कम्पनियां अपने कर्मचारियों के पूरे समय और ऊर्जा का प्रयोग करने के लिए बहुत से चालाकी भरे रास्ते अपनाती है। कभी पदोन्नति के नाम पर, कभी बरखास्तगी किये जाने के नाम पर और कभी प्रतियोगिता की चुनौती के नाम पर ये कम्पनीयां अपने कर्मचारियों का पूरा समय और ऊर्जा को प्रयोग करती है। इसलिए हमें अपने सही मूल्य को हमेशा मन में रखना चाहिये और सही चीजों को सही समय पर करना चाहिये। यीशु मसीह ने कहा कि हम परमेश्वर और धनसम्पत्ति की सेवा एक साथ नहीं कर सकते है। यीशु मसीह सही थे, तो भी हमें जीविका के लिए कार्य करना है और उसमें आने वाली समस्याओं को सहना है। परमेश्वर की एक सन्तान को जीवन की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कितना महत्वाकांक्षी होना चाहिये। यह लेख जो हमने पढ़ा अध्यात्मिक दृष्टिकोण से सम्बन्ध नहीं रखता और न ही इस परेशान करने वाली समस्या का कोई उत्तर देता है। इसमें लिखा था, कि ``कितने लोग ऐसे है जो इसलिए अपने काम को पसन्द करते है क्योंकि यह उनके लिए चुनौती पूर्ण नही है या इससे उनको तरक्की नहीं मिलती है — वास्तव में बहुत कम ऐसे है — जो इसलिए आपने काम को पसन्द नहीं करते है क्योंकि यह उनसे बहुत अधिक कुछ लिये बिना उनको जीविका प्रदान करता है। वे कुछ दूसरी जगह कुछ करना चाहते है और उनका कार्य उनको ऐसा करने के लिए उनके पास समय और ऊर्जा छोड़ता है।´´
यह इस समस्या के समाधान के लिए एक अच्छा प्रस्ताव है। यदि हम अपना सारा समय और ऊर्जा अपने काम को दे देगें तो प्रभू को देने के लिए हमारे पास क्या बचेगा? यदि हमें अपने व्यवसाय पर इतना ध्यान देने के आवश्यकता है कि यह परमेश्वर को पीछे दूसरे स्थान पर ले जाये, तो हमारा कोष कहा है? यीशु मसीह ने कहा है कि, ``क्योंकि जंहा तुम्हारा कोष है, वहीं तुम्हारा मन भी रहेगा।´´ जिस प्रकार बहुमूल्य हीरे मोतियों के विषय में सिर्फ बातें करके कोई लाभ नहीं होता है वैसे ही यदि हमारे द्वारा कही गयी बातें, हमारी सोच और हमारे कार्यो के अनुसार न हो तो सच्चाई का हमारे लिए क्या मतलब होगा। पौलुस कहता है, ``सभी लोगों की आखों में जो अच्छा हो उसे ही करने की सोचो।´´ हमें ईमानदारी से दैनिक मजदूरी के लिए अपना पूर्ण दैनिक कार्य करना चाहिये। इससे कम करना उचित नहीं है और इससे अधिक करना इस बात का सूचक है कि आप धरती पर अपना भण्डार भरने के लिए प्रयत्नशील है, जहां उसे कीड़े और जंग नष्ट कर देगें। चोर सेंध लगाकर उसे चुरा सकते है। इस सब के बावजूद भी कभी कभी एक मनुष्य को इस सच्चाई का पता चलता है कि उसने आर्थिक रूप से एक विशाल सफलता प्राप्त कर ली है लेकिन वह परमेश्वर और अपने परिवार के प्रति अपने कर्तव्य के निर्वाहन में असफल रहा है। वह सफलता पाने के लिए न केवल अपने स्वास्थ्य को खो देता है बल्कि उसे पता चलता है कि वह उन सब चीजों को भी खो चुका है जिनको सुरक्षित करने के लिए वह कठिन परिश्रम कर रहा था। उसने इतने लम्बे समय तक अपने परमेश्वर और परिवार को नजरअंदाज किया कि अन्त में वह अपने आप को अकेला पाता है उसके साथ कुछ होता है तो केवल उसका नासूर और उसका बैंक खाता।
यदि हम केवल पौलुस की सलाह पर ध्यान दें जब वह हमें यह चेतावनी देता है कि, ``यदि हमारे पास रोटी और कपड़ा है तो हम उसी में सन्तुष्ट है।´´ सबसे पहले परमेश्वर के राज्य और उसके धर्म की खोज करो, तो परमेश्वर हमें वे सब चीजें भी दे देगा जिनकी हमको आवश्यकता है। हां, हमें कार्य करना है, लेकिन अपने परिप्रेक्ष्य को खोये बिना। तो आओ हमें इस अनूभूति के साथ काम करते हुए खुश रहे कि, हम ईमानदारी से वही कार्य कर रहे है जो सबकी आखों में अच्छा है लेकिन हमें ``यहोवा के उपदेशों से प्रीति रखनी है और रात दिन उन उपदेशों का मनन करना है।´´
‘कार्य करते हुए प्रसन्न रहना’ is taken from ‘Minute Meditations’ by Robert J. Lloyd
परमेश्वर क्या चाहता है?
बाईबल के द्वारा परमेश्वर हमें बताता है कि वह कौन है और वह हमसे क्या चाहता है। सृष्टि निर्माण और परमेश्वर द्वारा बनाये गये मनुष्यों और दूसरी चीजों के साथ परमेश्वर के व्यवहार के द्वारा, हमें उसके चरित्र का पता चलता है। निश्चित समय पर, कुछ विशेष लोगों से अपनी मित्रता के द्वारा, परमेश्वर ने अपने विषय में, और वह हमसे क्या चाहता है, इस विषय में विस्तारपूर्वक बताया।
योना की पुस्तक अध्याय - 4
परमेश्वर से दूर भागने के अपने पहले प्रयास के बाद, योना परमेश्वर की आज्ञा के अनुसार नीनवे (अश्शूर सम्राज्य की राजधानी) को गया, और वहां के लोगों को आने वाले विनाश की चेतावनी दी। लेकिन जैसा योना को डर था, नीनवे में वैसा ही हुआ, वहां के लोगों ने अपने बुरे कामों को छोड़ दिया और परमेश्वर ने उन पर दया दिखाई। इस पर योना बहुत क्रोधित हुआ। योना को शिक्षा देने के लिए परमेश्वर ने, उस पेड़ को जिसकी छाया में योना बैठा था, एक कीड़े के द्वारा नष्ट किया। योना ने उस पेड़ के विषय में चिन्ता की जिसको उगाने के लिए उसने कुछ भी नहीं किया था। तो क्या परमेश्वर को उन एक लाख बीस हजार अनजान लोगों के विषय में अधिक चिन्ता नहीं करनी चाहिये, जिनको उसने बनाया?
- अश्शूर सम्राज्य अक्रामक और निर्दयी था। परमेश्वर ने योना को नीनवे भेजा, कि वह वहां के लोगों को चेतावनी दें। इससे हमें परमेश्वर के चरित्र के विषय में क्या बात पता चलती है?
- परमेश्वर ने नीनवे को चालीस दिन में नष्ट करने की बात कही, लेकिन वहां के लोगों के मन फिराने के बाद उसने ऐसा नहीं किया। इस बात से हम क्या निष्कर्ष निकाल सकते है, जब परमेश्वर भविष्य में किसी स्थान को नाश करने की बात कहता है?
- परमेश्वर द्वारा नीनवे के लोगों को क्षमा किये जाने से योना क्यों क्रोधित हुआ?
- क्या पेड़ के नष्ट होने पर योना को इसके लिए क्रोधित होने का अधिकार था?
- लगभग 60 वर्ष बाद अश्शूर ने बड़ी निर्दयता से इस्राएल के उत्तरी राज्य (जहां से योना आया था) को नष्ट कर दिया। क्या योना का नीनवे के विनाश को चाहना सही था?
- आप क्या सोचते है कि योना ने इस घटना से परमेश्वर के विषय में क्या सीखा?
सृष्टि में परमेश्वर
बाईबल के बिना हम कैसे जान सकते है कि परमेश्वर हमसे क्या चाहता है? आईये इस सृष्टि पर एक नजर डाले। इन तारों का दिखाई देना और एक नन्ही सी और जटिल कोशिका में पाये जाने वाले विस्तृत विवरण के अतिरिक्त, और क्या कोई चीज परमेश्वर की जीवित शक्ति को इतनी साफ रीति से दिखा सकती है? यहां तक की बाईबल पढने से पहले ही, हमें परमेश्वर द्वारा बनायी गयी सृष्टि के द्वारा उसके चरित्र का पता चल जाता है। जबकि बाईबल हमें, परमेश्वर के विषय में उससे और अधिक बताती है, जितना सृष्टि हमें बताती है।
परमेश्वर का चरित्र
सम्पूर्ण बाईबल के द्वारा परमेश्वर ने अपने आप को हम पर प्रगट किया, उसने भिन्न-भिन्न समयों पर अपनी भिन्न-भिन्न विशेषताओं को प्रगट किया, ठीक वैसे ही जैसे हम करते है। एक तरफ तो उसने अपनी शक्ति दिखायी, और दूसरी तरफ अपनी कोमलता को प्रदर्शित किया। बाढ़ के द्वारा उसने अपने दण्ड को प्रदर्शित किया और अपने बेटे को भेजकर अपना प्यार दर्शाया। भिन्न-भिन्न तरह से उसने मनुष्यों से व्यवहार किया और हमें अपने विषय में बताया क्योंकि वह हमें प्रेम करता है और चाहता है कि हम भी उससे प्रेम करें।
परमेश्वर की कुछ महत्वपूर्ण विशेषतायें
शायद परमेश्वर का सबसे अधिक विस्तृत विवरण, बाईबल की निर्गमन पुस्तक के अध्याय 34 में दिया गया है, जब मूसा परमेश्वर से दर्शन देने के लिए कहता है। परमेश्वर ने मूसा से कहा कि मनुष्य के लिए यह सम्भव नहीं कि वह परमेश्वर का मुंह देखकर जीवित रह सके, लेकिन उसने अपने आप को मूसा पर एक साफ और साधारण रीति से प्रदर्शित किया। निम्न विशेषताओं को रखने के द्वारा परमेश्वर ने अपने आप को दर्शाया।
करूणामय (पद 6) दूसरे के दुखों में दुखी होना करूणा है - दया और कृपा। परमेश्वर ने, हमारे पापों और उनके आये दुखों को दूर करने के लिए, अपने बेटे को इस जगत में भेजा।
``क्योंकि परमेश्वर ने जगत से ऐसा प्रेम रखा कि उस ने अपना एकलौता पुत्र दे दिया, ताकि जो कोई उस पर विश्वास करें, वह नाश न हो, परन्तु अनन्त जीवन पाए।´´ (यूहन्ना 3:16)
कृपालु (पद 6) यद्यपि हम इस लायक नहीं है लेकिन तो भी परमेश्वर ने हमारे लिए कुछ कार्य करके हमें अपनी कृपा दिखायी है। परमेश्वर की कृपा और दया का उदाहरण यह है कि उसने अपने बेटे को हमारे लिए मरने को भेजा।
``परन्तु परमेश्वर हम पर अपने प्रेम की भलाई इस रीति से प्रगट करता है, कि जब हम पापी ही थे तभी मसीह हमारे लिये मरा।´´ (रोमियों 5:8)
कोप करने में धीरजवन्त (पद 6) परमेश्वर ने हमसे ऐसा व्यवहार किया जिसके लायक हम नहीं थे। हमारे पापों के बावजूद भी वह हमारे प्रति धीरजवन्त रहा। परमेश्वर के विषय में योना की एक शिकायत थी - योना जानता था कि परमेश्वर धीरजवन्त और क्षमा करने वाला है यदि लोग अपने पापों से मन फिराये तो वह उनको क्षमा करता है। (योना 4:2)
प्रेम और विश्वसनीयता से परिपूर्ण (पद 6) अब्राहम से चार हजार वर्ष पहले की गयी प्रतिज्ञाओं को परमेश्वर भूला नहीं है। हम आज भी इन प्रतिज्ञाओं के वारिस बन सकते है। यह एक वास्तविक विश्वसनीयता है - भरपूर विश्वसनीयता। परमेश्वर ने कभी न बदलने वाले प्रेम को भी प्रगट किया; सम्पूर्ण इतिहास में परमेश्वर इस्राएल को सही रास्ते पर चलाने के लिए उसका मार्गदर्शन करता रहा।
क्षमा करने वाला (पद 7) पौलुस के साथ परमेश्वर के व्यवहार के द्वारा उसका क्षमा करने का गुण साफ रीति से प्रगट होता है, जबकि पौलुस एक ऐसा व्यक्ति था जिसने पहले विश्वासी लोगों को नष्ट करने के लिए उन पर हमले किये। परमेश्वर ने पौलुस को क्षमा किया। वह हममें से प्रत्येक को क्षमा कर सकता है यदि हम मन फिराये और दूसरों को क्षमा करें। (1 तिमुथियुस 1:12-16)
दोषियों को दण्ड देने वाला (पद 7) हनन्याह और सफीरा (प्रेरितों के काम 5:1-11) ऐसे विश्वासी थे जो दूसरे लोगों को अच्छा दिखाने की चाहत में यह भूल गये कि परमेश्वर को धोखा देना असम्भव है। उन्होनें कुछ भूमि बेची और यह दिखाने के लिए कि जो कुछ उनके पास है वे परमेश्वर को दे रहे थे, उन्होनें झूठ बोला। लेकिन परमेश्वर सच्चाई जानता था। हनन्याह और सफीरा मर गये क्योंकि परमेश्वर दोषी को दण्ड देता है। यदि हम मन नहीं फिराते है, तो हम भी दोषी है और हमारे पास, आगे परमेश्वर का दण्ड पाने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है। (इब्रानियों 10:26-27)
यह एक महत्वपूर्ण बात है कि यह परमेश्वर की एक ऐसी विशेषता है कि जिसकी हम नकल नहीं कर सकते, लेकिन केवल परमेश्वर के कार्य करने की प्रतिक्षा कर सकते है। परमेश्वर कहता है कि पलटा लेना मेरा काम है मैं ही बदला दूंगा। (रोमियों 12:19)
ईष्यालु (पद 14) परमेश्वर आधे-अधूरे मन से की गयी उपासना को स्वीकार नहीं करता है। परमेश्वर और संसार दोनों से एक साथ मित्रता कभी नहीं हो सकती है। परमेश्वर चेतावनी देता है कि संसार से मित्रता करनी परमेश्वर से बैर करना है। केवल परमेश्वर की उपासना करो( न कि धन या सत्ता या प्रसिद्धी की। (याकूब 4:4)
परमेश्वर की कुछ विशेषतायें
विशेषतायें | पुराना नियम | नया नियम |
---|---|---|
सृष्टिकर्ता और संभालनेवाला | उत्पत्ति 1; भजंन सहिंता 104:5-31 | प्रेरितों के काम 17:24-28 |
पिता | व्यवस्थाविवरण 32:6 | 1 कुरिन्थियों 8:6 |
पवित्र | निर्गमन 15:11 | 1 पतरस 1:15-16 |
प्रेम करने वाला | निर्गमन 34:6 | यहून्ना 3:16 |
पापरहित | व्यवस्थाविवरण 32:4 | याकूब 1:13 |
हाकिम और न्यायी | यशायाह 33:22 | याकूब 4:12; इब्रानियों 12:23 |
सर्वश्रेष्ठ | यशायाह 43:10 | 1 तिमुथियुस 2:5 |
अनन्त | व्यवस्थाविवरण 33:27; यशायाह 40:28 | 1 तिमुथियुस 6:15-16 |
क्रोध करने वाला | 2 इतिहास 24:18 | रोमियों 1:18 |
क्षमा करने वाला/न्यायी | निर्गमन 34:7; यशायाह 43:25 | रोमियों 8:33 |
ईष्यालु | निर्गमन 20:5 | 1 कुरिन्थियों 10:21-22 |
सर्वज्ञाता | यशायाह 44:6-8; 46:10 | 1 यहून्ना 3:20 |
सर्वव्यापी | भजंन सहिंता 139:7-12 | प्रेरितों के काम 17:24:28 |
प्रार्थना सुनने वाला | भजंन सहिंता 65:2 | मत्ति 6:6 |
प्रतिज्ञा पूरा करने वाला | यहोशू 21:45; 23:15-16 | प्रेरितों के काम 13:32-33 |
सर्वशक्तिमान | यशायाह 44:24-28; यिर्मयाह 27:5; 32:17,27 | लूका 1:37 |
परमेश्वर के विषय में हम और क्या जानते है?
परमेश्वर की दो अतिरिक्त और महत्वपूर्ण विशेषतायें जो निर्गमन के 34 अध्याय में विर्णत नहीं है यह है कि वह पवित्र और सृष्टिकृता है।
पवित्र पवित्रता को बुराई से अलग किया गया है। परमेश्वर चाहता है कि हम भी पवित्र बने क्योकिं वह पवित्र है। इस पवित्रता को, और मनुष्य के जीवन में परमेश्वर के समान होने का अर्थ क्या है, इसको दिखाने के लिए परमेश्वर ने यीशु मसीह को हमारे पास भेजा। यीशु मसीह ने परमेश्वर के चरित्र को प्रदर्शित किया और वैसा ही हमारे जीवन में भी दिखाई देना चाहिये। (1 पतरस 1:15-16)
सृष्टिकृता परमेश्वर आज भी हमारे अन्दर एक सृष्टिकृता के रूप में कार्य करता है जब वह हममें एक नया जीवन, एक नयी आशा, एक नया आनन्द और एक नयी शान्ति की सृष्टि करता है। वह नहीं चाहता कि कोई भी नाश हो, लेकिन चाहता है कि सभी मन फिराये और उस नये जीवन को प्राप्त करें। (यहून्ना 3:16)
हमारे और परमेश्वर के बीच में दो बड़ी भिन्नता है कि वह कभी पाप नहीं कर सकता और कभी बदलता नहीं। वह आज भी वैसा ही है जैसा कि उसने बाईबल में अपने आप को प्रदर्शित किया है। (मलाकी 3:6; याकूब 1:17)
सारांश
परमेश्वर का चरित्र पेचीदा है और वह सीखाना चाहता है कि वह हमसे क्या चाहता है। वह कहता है कि जो विशेषतायें उसने हमें दिखायी है हम उसमें से अधिक से अधिक की नकल करें। जैसे कि -
- दयालु और करूणामय।
- कृपालु।
- कोप करने में धीरजवन्त।
- प्रेम और विश्वसनीयता से परिपूर्ण।
- अधर्म, अपराध और पाप का क्षमा करने वाला।
परमेश्वर चेतावनी के रूप में भी अपनी कुछ विशेषताओं को हमें बताता है। जैसे -
- दोषी को वह किसी रीति निर्दोष न ठहरायेगा।
- ईष्यालु
परमेश्वर और उसके चरित्र के विषय में जानाने और सीखना में बड़ा ही प्रतिफल देने वाला अध्ययन है। यह हमारे जीवन के आज के और भविष्य को लिए अति आवश्यक है।
’परमेश्वर क्या चाहता है?’ is taken from ‘The Way of Life’ by Rob J. Hyndman
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दि क्रिस्टडेलफियन
पो. बा. न. -- 10
मुजफ्फरनगर (यूपी) -- 251002
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