तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है। भजन संहिता 119:105
प्रसन्नसा (Appreciation)
यह कहा गया है कि हम कुछ चीजों की सराहना तब तक नही करते जब तक कि हम उन्हें खो ना दें। हाल ही में हमें एक मसीही भाई द्धारा भेजा गया एक पत्र मिला जिसमें उन्होंने अपनी सूंघने की शक्ति वापस मिलने की खुशी जाहिर की थी। यह हमारे लिए एक सामान्य बात है कि हम फूलों की सुगन्ध को महसूस कर सकते है, पेड़ से गिरते हुए पत्तों को देख सकते है, वर्षा की बूदों का पटपटाना सुन सकते है और हवा की ठण्डक को महसूस कर सकते है। लेकिन जब हमारी आखें धुंधला देखने लगती है और हमारे कान चिडियों का चहकना सुनना बंद कर देते है तो हम अपने परमेश्वर की सराहना करते है जिसने हमें ये शक्तियां दी और जिनको हम साधारणतया लेते थे।
यही बात हमारे आत्मिक वरदानों के लिए भी है। हमें याद है कुछ वर्षो पहले जब एक नवयुवती बाईबल स्कूल में आयी तो वह, उस सच्चाई और उद्धार की उस आशा को जानकर, भौंचक्की रह गयी, जिसको हमारे परमेश्वर ने हमें दिया है और जिसको अधिकाशं नौजवान लोग साधारणतया लेते है। केवल उसी जवान लड़की ने इन बातों को सीखा और इस सच्चाई को जानकर उसकी आखें चकाचौंध हो गयी जबकि अन्य लोग इस आश्चर्यजनक आशा के प्रति बहुत ही बेपरवाह लग रहे थे। हमारे बाईबल स्कूल के अध्यापक ने उसे बताया कि जो लोग अभी-अभी रोशनी में आये है वे इसकी चमक से, उन लोगों की अपेक्षा अधिक चकाचौंध होते है जो इस रोशनी में पहले से है और इसके आदि हो गये है।
जब हम इस सच्चाई को पहचान लेते है तो हमें, उन लोगों की अपेक्षा, जो इसे साधारणतया लेते है, प्रतिदिन इन बातों के लिए परमेश्वर का धन्यवाद करना चाहिए। अपने इस जीवन के लिए परमेश्वर को दिया गया धन्यवाद हमें नम्र और प्रसन्न बनाये रखेगा। इसलिए बहुत से लोग प्रसन्न नही है क्योंकि वे उन आशीषों को नही जानते जो उन्हें मिली है। हर एक सुबह जब हम अपने बिस्तर से उठते है तो हमें परमेश्वर का धन्यवाद करना चाहिए कि उसने हमें स्वस्थ रखा और हमें सामर्थ दी कि हम उठ सके, क्योंकि करोड़ो लोग ऐसे है जो अपने बिस्तर से नही उठ सकते। जब हम खाना खाते है तो हमें परमेश्वर का धन्यवाद करना चाहिए कि उसने हमें पोषण के लिए वह खाना दिया। हम अब उन करोड़ो लोगों के विषय में सोचते है जिनके पास खाने को कुछ नही है और जो भूख से मर रहे है। तो क्या हम यह शिकायत करते है कि हमारे खाने में नमक कम है या वह स्वादिष्ट नही है?
एक व्यक्ति के विषय में एक कहानी है जिसे यह शिकायत थी कि उसके पास जूतें नही थे; और उसकी यह शिकायत तब खत्म हो गयी जब उसने एक ऐसे व्यक्ति को देखा जिसके पैर नही थे। तो क्या परमेश्वर की दृष्टि में हम ऐसे विवाद या शिकायत करने वाले व्यक्ति है जो हमें मिली सभी आशीषों के प्रति कृतघ्न है? एक बहुत ही अच्छा अभ्यास है कि हम उन सब बातों की एक लिस्ट बनाये जिनके लिए हमें परमेश्वर को धन्यवाद देना है। अगली बार जब हम प्रार्थना करें तो उन सब चीजों के लिए प्रार्थना करें जो उसने हमें दी है ना कि हम उन चीजों के लिए प्रार्थना करें जो हमें चाहिए।
दाऊद जब बूढा था तो उसने एक बहुत ही अच्छी बात कही। उसका यह विचार हमें याद रखना चाहिए। उसने कहा, “मैं लड़कपन से लेकर बुढ़ापे तक देखता आया हूं; परन्तु न तो कभी धर्मी को त्यागा हुआ, और न उसके वंश को टुकड़े मांगते देखा है। वह तो दिन भर अनुग्रह कर करके ॠृण देता है, और उसके वंश पर आशीष फलती रहती है” इस विचार में जबरदस्त सुख है। यह सब इस बात पर निर्भर करता है कि क्या हम परमेश्वर के वंश है और हमें पौलुस की उस बात को याद रखना चाहिए जो वह गलतियों के लोगों से कहता है कि हम किस प्रकार परमेश्वर के वशं हो सकते है। सच्चाई यह है कि यदि हम परमेश्वर के वंश है तो ही वह हमें सब कुछ देता है। वह हमेशा हमें वह नही देता जो हमें चाहिए लेकिन वह हमेशा हमें वह देता है जिसकी हमें आवश्यकता है। हम भी माता और पिता है और हम इस बात को अच्छी तरह से जानते है कि यदि हम अपने बच्चों से प्यार करते है तो हम उन्हें वे सब चीजें नही देते जो वे हमसे चाहते है। एक बुद्धिमान व्यक्ति, सुलेमान, जो बहुत ही धनी राजा था, उसने हमें सिखाया कि हमें यह कहकर प्रार्थना करनी चाहिए कि, “मुझे न तो निर्धन कर और न धनी बना; प्रतिदिन की रोटी मुझे खिलाया कर। ऐसा न हो, कि जब मेरा पेट भर जाये, तब में इन्कार करके कहूं कि यहोवा कौन है? वा अपना भाग खोकर चोरी करूं, और अपने परमेश्वर का नाम अनुचित रीति से लूं।”
धन्यवाद एक ऐसी चीज है जो हमें प्रतिदिन देना चाहिए क्योंकि धन्यवाद देने के लिए हमारे पास बहुत कुछ है तो आओ हम उस हर एक आशीष के लिए अपने स्वर्गीय पिता का धन्यवाद करें जो उसने हमें दी है, आओ हम उसके छोटे से छोटे पुरस्कार को भी साधारणतया न लें और उसके लिए उसका धन्यवाद करें। हम जानते है कि वह छोटे से छोटे लोगों की छोटी से छोटी बातों का ध्यान रखता है क्योंकि प्रभु यीशु हमें बताते है कि यहां तक कि हमारे सिर के बाल भी गिने हुए है। यह जानकर आओ हम उत्साह के साथ उसका धन्यवाद करें, क्योंकि, “यहोवा के डरवैयों के चारों ओर उसका दूत छावनी किए हुए उनको बचाता है। परखकर देखों कि यहोवा कैसा भला है! क्या ही धन्य है वह व्यक्ति जो उसकी शरण लेता है।”
‘प्रसन्नसा’ (Appreciation) is taken from ‘Minute Meditations’ by Robert J. Lloyd
परमेश्वर का यीशु के साथ सम्बन्ध
(The Relationship of God with Jesus)
एक एकलौता पुत्र जो पूर्णतया विश्वासयोग्य और आज्ञाकारी था- जिसने अपने पिता की सभी इच्छाओं को पूरा किया और अपने पिता के प्रेम को इस संसार के लिए प्रदर्शित किया। इस प्रकार बाईबल परमेश्वर के एकलौते पुत्र, यीशु का, वर्णन करती है। परमेश्वर और यीशु के बीच, एक प्यार करने वाले और समर्पित, पिता और एक, पूर्णतया आज्ञाकारी, पुत्र का सम्बन्ध है। यह एक सबसे बड़ा सम्बन्ध है और अनुसरण करने के लिए हमारे लिए एक सबसे अच्छा उदाहरण है।
मुख्य पद – मत्ति 3:13-17
जब यीशु 30 वर्ष के थे तो वे उन कार्यो को करने के लिए पूरी तरह से तैयार थे, जिनको करने की उनके पिता ने उनके लिए योजना बनायी थी। उनको एक ऐसा प्रचारक बनना था जिसको पूरे संसार को बदलना था और सम्पूर्ण धार्मिकता को पूरा करने के लिए उनके सभी कार्यो की रूपरेखा परमेश्वर द्धारा उनको दी गयी। यीशु ने जो बपतिस्मा लिया वह मनफिराव या पापों की क्षमा के लिए नही लिया, जैसा कि हम सब करते है, बल्कि यह उनकी अपने पिता के लिए आज्ञाकारिता और प्रेम को प्रदर्शित करने का एक हिस्सा था। परमेश्वर ने अपने पुत्र के लिए अपनी भावना को, स्वर्ग से बोले गये इन शब्दो के द्धारा, प्रकट किया, “यह मेरा प्रिय पुत्र है, जिस से मैं अत्यन्त प्रसन्न हूँ” एक प्यार करने वाला पिता सबको सुनाते हुए अपने आज्ञाकारी पुत्र की प्रसन्नसा कर रहा है।
- जब परमेश्वर के पुत्र ने बपतिस्मा लिया तो परमेश्वर क्यों इतना प्रसन्न था?
- यह पहली बार नही था जब परमेश्वर लोगों को अपने बच्चे कहता है। (यशायाह 45:11 देखें) तो किस प्रकार यीशु का सम्बन्ध परमेश्वर के साथ, अन्य लोगों की अपेक्षा जिनको वह अपना पुत्र कहता है, भिन्न था?
- यीशु के बपतिस्मा लेने के शीघ्र बाद, यूहन्ना बपतिस्मादाता उनको परमेश्वर का मेमना कहता है। (यूहन्ना 1:29,36) परमेश्वर और यीशु के सम्बन्ध के विषय में यह दृश्य हमें क्या बताता है?
परमेश्वर का प्रिय पुत्र
यीशु के जीवन में कई अवसरों पर परमेश्वर ने उन्हें अपना प्रिय पुत्र कहा। चरवाहों और ज्योतिषियों को उनके जन्म की घोषणा के बाद, परमेश्वर का यीशु के लिए प्रेम उस चेतावनी से प्रकट होता है जो उसने यूसुफ को दी कि वह हेरोदेस से बचकर परिवार को लेकर मिस्र को चला जाये। (मत्ति 2:13-18)
उनके पुन: इस्राएल आने के बाद परमेश्वर ने परिवार को नसारत जाने के लिए कहा जहां यीशु सुरक्षित रूप के साथ बढ़ सकते थे। जैसे-जैसे यीशु बढ़ते गये वे परमेश्वर के और भी प्रिय होते गये। बालक यीशु बुद्धि में और परमेश्वर के प्रेम में बढ़ते गये और परमेश्वर का अनुग्रह उन पर था। उनके लिए यह स्वाभाविक था कि (12 वर्ष की आयु में) येरूशलेम “अपने पिता के घर” में मन्दिर में जाकर प्रचार करें। अपने पिता के साथ वहां समय व्यतित करना उनके लिए स्वाभाविक था। सभी बच्चे बढ़ते है और सीखते है और यीशु ने सिखा की उनका पिता उनका परमेश्वर भी है और अपने पिता का आज्ञाकारी रहना चाहिए। यीशु के जीवन के इस समय के विषय में हम बहुत ही कम जानते है, लेकिन इससे हमें एक संदेश अवश्य मिलता है कि वह, “बुद्धि और डील-डौल में और परमेश्वर और मनुष्यों के अनुग्रह में बढ़ता गया” (लूका 2:41-52)
यीशु का परमेश्वर के लिए सम्बोधन और उनका सम्बन्ध
मेरा परमेश्वर | मत्ति 27:46; प्रकाशितवाक्य 3:12 |
मेरा परमेश्वर और तुम्हारा परमेश्वर | यूहन्ना 20:17 |
मेरा पिता | मत्ति 16:17,18,19; लूका 2:49 |
पिता, पुत्र से प्रेम रखता है | यूहन्ना 3:35; 5:20; 10:17 |
पिता ने मुझे भेजा है | लूका 4:43; यूहन्ना 5:37; 6:57; 8:42; 10:36; 12:49; 17:21,25; 20:21 |
मेरा पिता मुझ से बड़ा है | यूहन्ना 14:28 |
मैं पिता के कारण जीवित हूँ | यूहन्ना 6:57 |
मैं और पिता एक है | यूहन्ना 10:30 |
मेरे पिता ने मुझे सबकुछ सौंपा है | मत्ति 11:27 |
मेरी नही बल्कि तेरी (परमेश्वर की) इच्छा पूरी हो | लूका 22:42 |
पुत्र केवल वही करता है जो वह पिता को करते देखता है | यूहन्ना 5:19 |
अपने दाहिने बायें किसी को बिठाना मेरा काम नही (पर पिता का) | मत्ति 20:23 |
दुख उठाकर आज्ञा मानना सीखा
अपने आनन्द में और अपने दुखों में, अपनी गवाही के साथ यीशु ने सीखा की अपने पिता की आज्ञाओं को मानना कितना आवश्यक है। जब भी यीशु अपने पिता के विषय में बात करते है तो हमें परमेश्वर के सम्मुख उनकी स्थिति का पता चलता है। यीशु अपने विषय में बताते है कि उन्हें परमेश्वर ने भेजा है; परमेश्वर की सामर्थ के बिना वे कुछ नही कर सकते; उनका न्याय परमेश्वर का न्याय था। यीशु ने कहा कि उनका पिता उनसे बड़ा था। परमेश्वर का एक सेवक होने के रूप में उन्हें एक कार्य करने को दिया गया था जो उन्होंने किया।
यीशु के रूपान्तर के समय और उसके बाद गदसमनि में, परमेश्वर अपने पुत्र के बहुत अधिक निकट था। बहुत ही विशेष तरीके से परमेश्वर ने यीशु की सहायता के लिए अपनी इच्छा को प्रकट किया जिससे कि वह क्रूस पर मृत्यु की उस भयानक पीड़ा का सामना साहस के साथ कर सकें। बड़े दुख की बात है कि मानवजाति के पापों के कारण यीशु का इस संसार के लिए मरना आवश्यक था, क्योंकि इस संसार को बचाने का और कोई दूसरा तरीका नही था। परमेश्वर का प्रिय पुत्र होने के कारण यीशु का कर्तव्य था कि वह अन्त तक अपने पिता की आज्ञा का पालन करें और अपनी दु:ख और पीड़ाओं के द्धारा आज्ञा मानना सीखें। (इब्रानियों 5:8)
कुछ सम्बन्धित पद
बाईबल से परमेश्वर और यीशु के बीच हम निम्नलिखित भिन्नताऐं देख सकते है:
परमेश्वर | यीशु मसीह |
परमेश्वर की परीक्षा नही हो सकती है | यीशु सब बातों में हमारी नाई परखे गये |
(याकूब 1:13) | (इब्रानियों 4:15) |
परमेश्वर नही मर सकता | यीशु मरें |
(1 तीमुथियुस 6:16) | (1 कुरिन्थियों 15:3-4) |
परमेश्वर सबकुछ जानने वाला सर्वज्ञाता है | यीशु ने सीखा |
(1 यूहन्ना 3:20) | (यूहन्ना 15:15) |
परमेश्वर सदा विराजमान है | परमेश्वर ने यीशु को विराजमान किया |
(भजन 92:8; दानिय्येल 4:34) | (प्रेरितों 5:31; फिलिप्पियों 2:9) |
अन्य दूसरी कौन सी भिन्नतायें आप बाईबल से खोज सकते है?
महिमा में लिया जाना
पुर्नरूत्थान के बाद यीशु स्वर्ग में परमेश्वर के दाहिने ओर बैठने के लिए ले लिये गये ताकि वे फिर से कभी मृत्यु की पीड़ा को न सहे। परमेश्वर ने प्रतिज्ञा की थी कि यदि वे इस संसार के लिए अपना जीवन बलिदान कर देगें तो वे फिर से जीवित होंगे। क्रूस पर यीशु की मृत्यु के बाद तीसरे दिन सुबह सवेरे परमेश्वर ने अपनी प्रतिज्ञा को पूरा किया और अपने पुत्र को जीवित किया और उनको वह स्थान दिया जो इस ब्रहमाण्ड में सबसे बड़ा है। यीशु, परमेश्वर और मानवजाति के बीच, एकमात्र बीचवई, महायाजक और उद्धारकर्ता हो गये जिनके द्धारा सभी का मनफिराव और क्षमा सम्भव है। यीशु अपने पिता के साथ पूर्णतया एक हो गये। (फिलिप्पियों 2:9-11; 1 तीमुथियुस 2;5; इब्रानियों 4:14-15; प्रेरितों के काम 5:30-31)
त्रिएकता
आज लगभग सभी मसीही कलीसियाऐं यह सिखाती है कि यीशु और उनका पिता और पवित्र आत्मा तीनों ही त्रिएक परमेश्वर है। त्रिएकता में विश्वास करने वाले अधिकांश लोग मानते है कि यीशु, उनके पिता और पवित्र आत्मा ये सभी, “बराबर”, “अविनाशी”, “अजन्में”, “सर्वशक्तिमान”, और “परमेश्वर” है। यह विचार बाईबल के अनुसार नही है। यीशु ने कभी भी अपने आप को परमेश्वर के तुल्य नही कहा; उन्होंने लगातार कहा कि, “मेरा पिता मुझ से बड़ा है” (यूहन्ना 14:28) यहां तक कि वे परमेश्वर को “मेरा परमेश्वर” कहते है। (यूहन्ना 20:17; प्रकाशितवाक्य 3:12) बाईबल यह भी नही बताती है कि यीशु परमेश्वर के समान ही अविनाशी और अजन्में है; उन्होंने एक बालक के रूप में पृथ्वी पर जीवन की शुरूआत की, जबकि उनका पिता सदा सर्वदा से विद्यमान था।
पुन:आगमन
प्रभु यीशु मसीह पुन: इस पृथ्वी पर आ रहे है। वे अपने पिता के पास से आकर पृथ्वी पर तब तक राज्य करेंगे जब तक कि अन्तिम शत्रु (मृत्यु) का नाश न हो जायें। मृत्यु के नाश होने के बाद यीशु राज्य को अपने पिता को सौंप देगें। फिर पुत्र आप भी उसके अधीन हो जायेगा जिस ने सब कुछ उनके अधीन कर दिया (1 कुरिन्थियों 15:24-28)
सारांश
पिता के रूप में परमेश्वर:
- जिसने अपने पुत्र प्रभु यीशु मसीह से प्रेम किया।
- जिसने अपने पुत्र यीशु का निर्देशन किया और उसको आज्ञायें दी।
- जिसने हर बात में अपने पुत्र की सहायता की।
- जिसने आज्ञाकारिता के लिए अपने पुत्र को पुरस्कृत किया।
पुत्र के रूप में यीशु:
- जिसने अपने परमेश्वर और पिता का सम्मान किया और उससे प्रेम किया।
- जिसने अपने पिता की इच्छाओं को पूरा किया।
- जो कष्ट सहने के बाद भी अपने पिता का आज्ञाकारी रहा।
- जिसने अपने पिता के प्रेम और आशीषों को प्राप्त किया और जो पिता द्धारा राज्य दिये जाने की प्रतिक्षा में है।
विचारणीय पद
- यीशु के समय में परमेश्वर ने स्वर्ग से कई बार उनके विषय में बोला। इन सभी पदों को बाईबल से देखिए कि परमेश्वर ने अपने पुत्र के विषय में क्या कहा था? किसके लाभ के लिए ये बातें कही गयी?
- यूहन्ना 5:18 में जब यीशु ने अपने आप को परमेश्वर का पुत्र कहा तो यहूदियों ने कहा कि वे ऐसा कहकर अपने आप को परमेश्वर के तुल्य बता रहे थे। पद 19 में यीशु ने उन्हें उत्तर दिया। क्या उन्होंने कहा कि यहूदी सही कह रहे थे?
अन्य खोज
- जब यीशु अपने पिता और हमारे बीच में बीचवई हो गये तो उनके पिता के साथ उनका सम्बन्ध कैसे बदल गया?
- परमेश्वर का यीशु के साथ सम्बन्ध, पिता और पुत्र के बीच सम्बन्ध का एक उत्तम उदाहरण है। इससे हम अपने जीवन में अपनाने के लिए क्या सीख सकते है?
‘परमेश्वर का यीशु के साथ सम्बन्ध’ (The Relationship of God with Jesus) is from ‘The Way of Life’, edited by Rob J. Hyndman
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