तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक , और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है। भजन संहिता 119:105
पेपर, पेपर (Paper, Paper)
एक व्यापारी के विषय में एक कहानी है जो प्रतिदिन एक भूमिगत पैदल पार पथ से जाया करता था। वह स्वचलित सीढियों से ऊपर सड़क तक जाता था और सड़क के कोने तक पैदल चलता था जहाँ वह एक छोटे लड़के से अखबार खरीदता था ये लड़का चिल्लाकर अखबार बेचता था “पेपर! पेपर!” अखबार लेकर यह व्यक्ति मुस्कराता था और लड़के को पैसे देकर उसको धन्यवाद बोलता था। वह लड़का कभी नही मुस्कराता था और न ही धन्यवाद का उत्तर देता था और न ही कभी बख्शीस के लिए आभार व्यक्त करता था। उस व्यक्ति का सहयात्री प्रतिदिन इस घटना को देखता था और एक दिन उसने व्यपारी व्यक्ति से पूछा, “माफ कीजिए लेकिन प्रतिदिन मैं आपको देखता हूँ कि आप उस छोटे लड़के से अखबार खरीदते है। आप हमेशा उसे मुस्कराकर धन्यवाद देते है लेकिन वह कभी भी आपकी परवाह नही करता। वह केवल आपसे पैसा लेता है और फिर आवाज लगाने लगता है ‘पेपर! पेपर!’ आप क्यों उस ढींढ बच्चे से इतना अच्छा व्यवहार करते हो?” व्यपारी व्यक्ति ने आश्चर्यभरी दृष्टि से देखकर उत्तर दिया, “मैं उस छोटे लड़के से व्यवहार सीखना नही चाहता।”
हममें से कितने ऐसे लोग है जो इस नियम पर चलते है कि यदि आप मुझसे अच्छा व्यवहार करते है तो मैं भी आपसे अच्छा व्यवहार करूंगा और यदि आप मुझे नजरअंदाज करते है तो मैं भी आपको नजरअंदाज करूंगा? क्यों हम लोगों को यह अवसर दे कि वे हमें व्यवहार करना सिखाये? क्या यीशु ने नही कहा कि, “जैसे तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ व्यवहार करें तुम भी उनके साथ वैसा ही करो।” उन्होंने यह नही कहा कि, “तुम भी उनसे वैसे ही व्यवहार करो जैसा वे तुमसे करते है बल्कि जैसा तुम चाहते हो कि वे तुम्हारे साथ व्यवहार करें।”
यदि हम दूसरों के व्यवहार के अनुसार अपनी प्रतिक्रिया दें तो वे हमारे मालिक है। ऐसी स्थिति में हम उनके हाथों की कठपुतली है। और जैसे वे हमसे कराना चाहते है वैसा ही हम करते है। यदि दूसरे लोगों का हमारे कार्यो पर नियन्त्रण है तो हम कैसे प्रभु को प्रसन्न कर सकते है?
प्रभु यीशु मसीह आगे कहते है, “कि यदि तुम अपने प्रेम रखने वालों के साथ प्रेम रखो, तो तुम्हारी क्या बडाई? क्योंकि पापी भी अपने प्रेम रखने वालों के साथ प्रेम रखते है।”
हमें बताया गया है कि अपराधी भी अपनी माता से प्रेम करते है। यह अच्छी बात है कि वे ऐसा करते है और जैसे वे अपनी माता से प्रेम करते है वैसे ही वे अपने शत्रुओं से भी प्रेम करें। उच्च नैतिकता वाले जिस आचरण का हमें अनुकरण करना है यह संसार उससे अज्ञात नही है, लेकिन प्रभु यीशु मसीह जो हमसे करने को कह रहे है निश्चित ही संसार में उसका विस्तार नही हुआ है। ये शरीर प्रतिक्रिया देता है लेकिन शिष्य होने के नाते हमें क्रिया करनी चाहिए। इस संसार की तुलना में, जो अपने मित्रों से प्रेम करता है, हमें अपने शत्रुओं से प्रेम करना चाहिए। आओ हम प्रभु यीशु मसीह के इन निर्देशों को सुने, “जो कोई तुझ से मांगे, उसे दे; और जो तेरी वस्तु छीन ले, उस से न मांग। और जैसा तुम चाहते हो कि लोग तुम्हारे साथ करें, तुम भी उन के साथ वैसा ही करो। यदि तुम अपने प्रेम रखने वालों के साथ प्रेम रखो, तो तुम्हारी क्या बडाई? क्योंकि पापी भी अपने प्रेम रखने वालों के साथ प्रेम रखते है। और यदि तुम अपने भलाई करने वालों ही के साथ भलाई करते हो, तो तुम्हारी क्या बडाई? क्योंकि पापी भी ऐसा ही करते है। और यदि तुम उन्हें उधार दो, जिन से फिर पाने की आशा रखते हो तो तुम्हारी क्या बडाई? क्योंकि पापी पापियों को उधार देते है, कि उतना ही फिर पायें। बरन अपने शत्रुओं से प्रेम रखो, और भलाई करो; और फिर पाने की आस न रखकर उधार दो; और तुम्हारे लिए बडा़ फल होगा और तुम परम प्रधान के सन्तान ठहरोंगे, क्योंकि वह उन पर जो धन्यवाद नही करते और बुरों पर भी कृपालु है। जैसा तुम्हारा पिता दयावन्त है, वैसे ही तुम भी दयावन्त बनो।”
इसलिए याद रखिए कि हमें किसी छोटे लड़के से या किसी अन्य से व्यवहार सिखने की आवश्यकता नही है। प्रभु यीशु ने हमें सिखाया है कि, “जैसा तुम्हारा पिता दयावन्त है, वैसे ही तुम भी दयावन्त बनो; दोष मत लगाओ; तो तुम पर भी दोष नही लगाया जाएगा; दोषी न ठहराओ, तो तुम भी दोषी नही ठहराए जाओगे; क्षमा करो, तो तुम्हारी भी क्षमा की जाएगी। दिया करो, तो तुम्हें भी दिया जाएगा; लोग पूरा नाप दबाकर और हिला हिलाकर, ओर उभरता हुआ तुम्हारी गोद में डालेंगे, क्योंकि जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिये भी नापा जाएगा।”
इसलिए दयावन्त होने का अर्थ है उन पर दया करना जो इसके योग्य नही है, शत्रुओं के प्रति उद्वार होना और दूसरों पर दोष ना लगाना जो दया परमेश्वर ने हम पर की है वही दया हमें दूसरों के साथ करनी है अब चाहे वह एक अखबार बेचने वाला छोटा लड़का ही क्यों न हो। तभी हमें बडा फल मिलेगा और हम परम प्रधान की सन्तान ठहरेंगे।
‘पेपर, पेपर’ (Paper, paper) is taken from ‘Minute Meditations’ by Robert J. Lloyd
बाईबल अध्ययन
(Bible reading)
बाईबल केवल प्राचीन समय में घटी हुयी घटनाओं की कहानियों की किताब नही है। और न ही यह केवल भविष्य में होने वाली घटनाओं की किताब है। बाईबल एक ऐसी किताब भी है जिसके द्वारा हम यह सीख सकते है कि आज हम किस प्रकार का जीवन जिये जो परमेश्वर हमसे चाहता है। यदि अब तक आपने बाईबल अध्ययन शुरू नही किया है तो आज ही से प्रतिदिन बाईबल अध्ययन करना शुरू कीजिये।
मुख्य पद: नहेमायाह 8:1-12
इस्राएल के केवल कुछ लोगों ने ही पहले किसी बाईबल को पढते हुए सुना था। एज्रा, जो एक शास्त्री और शिक्षक था, और शायद कुछ दूसरे लोग ही केवल बाईबल की पहली पाँच पुस्तकों को रखते थे। शायद अधिकांश साधारण इस्राएली लोग इन व्यक्तियों के पास नही जा सकते थे जिनके पास बाईबल की ये पाँच पुस्तके थी। इसलिए जब उन्होनें बाईबल को पढते हुए सुना तो वे रोने लगे।
- इस सभा में कौन उपस्थित था? हमारे विचार से किसको प्रतिदिन बाईबल पढनी चाहिए?
- बाईबल पढना शुरू करने से पहले एज्रा ने क्या किया? हमारे विचार से आज हमें बाईबल कैसे पढनी चाहिए?
- यह कितना महत्वपूर्ण है कि जो कुछ हम लोगों के लिए पढे वे इसे समझे? हमारे विचार से हमें आज अपनी बाईबल कैसे पढनी चाहिए?
- आप क्या सोचते है कि लोग क्यों रोये? आप क्या सोचते है कि उन्होनें खुशी क्यों मनायी?
एक आवश्यक अभ्यास
यदि हम परमेश्वर की सेवा करना चाहते है तो सबसे पहले हमें इस बात को जानना जरूरी है कि परमेश्वर बाईबल के द्धारा हमसे क्या कहना चाहता है।
दूसरा अन्य क्या माध्यम है जिससे हम परमेश्वर की इच्छा को जान सकते है कि वह हमसे क्या चाहता है? वास्तव में यदि हम बाईबल में कही गयी परमेश्वर की बातों को नही सुनते है तो वह भी हमारी प्रार्थनाओं को नही सुनेगा। (नीतिवचन 28:9)
परमेश्वर ने बाईबल में हमें अपने वचन दिये है कि हम उनका अध्ययन करे। पौलुस लिखता है-
“हर एक पवित्र शास्त्र परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है और उपदेश, और समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिए लाभदायक है। ताकि परमेश्वर का जन सिद्ध बने, और हर एक भले काम के लिए तत्पर हो जाए।”
इसलिए यदि हम गम्भीरता से मसीह के पीछे चलना चाहते है तो हमें इस पुस्तक को जानना बहुत ही जरूरी है। जिस परमेश्वर ने यह पुस्तक हमें दी है हमें उसको जानना जरूरी है कि वह कौन है और हमें उसके अनुसार कैसा जीवन जीना चाहिए। यह पुस्तक हमें इसलिए दी गयी है कि यह हमारे जीवन का एक हिस्सा हो।
जब हम समस्या में हो तो हमें बाईबल को खोलकर पढना चाहिए और उससे सहायता लेनी चाहिए। बाईबल केवल किन्ही विशेष परिस्थितियों के लिए नही है बल्कि हमें प्रतिदिन इससे कुछ न कुछ सीखने के लिए दी गयी है।
कुछ सलाह
- प्रार्थना – प्रभु यीशु मसीह ने हमसे वायदा किया है कि, “मांगो, तो तुम्हें दिया जाएगा, ढूंढो, तो तुम पाओगे; खटखटाओ, तो तुम्हारे लिये खोला जायेगा।” (मत्ति 7:7)
यदि हम ईश्वर से प्रार्थना करेंगे तो वह बाईबल को समझने और इसे अपने जीवन में लागू करने में हमारी सहायता करेगा। - योजनाबद्ध तरीके से पढना - क्योंकि बाईबल एक बडी पुस्तक है और यह बहुत ही महत्वपूर्ण भी है तो हमें इसे एक योजनाबद्ध तरीके से पढना चाहिए। यह हमारे जीवन की अभ्यास पुस्तिका है अत: इसे भलीभांति पढना जरूरी है। योजनाबद्ध तरीके से पढने से आपको बाईबल के सभी भागों को नियमित रूप से और अच्छी तरह से समझने में सहायता मिलती है।
- समय – यदि आप जल्दी में नही है तो बाईबल को अधिक प्रभावी तरीके से पढ सकते है। प्रतिदिन 20-30 मिनट का समय निकालकर आप कुछ अध्यायों को पढें और सोचे कि इनका क्या अर्थ है। बाईबल के सन्देश और इसकी पृष्ठ भूमि से परिचित होने में समय लगता है। आपको धैर्य रखकर इसे पढने की जरूरत है और यह आपको समझ में आने लगेगी।
परमेश्वर ने यहोशू से कहा, “व्यवस्था की यह पुस्तक तेरे चित्त से कभी न उतरने पाये, इसी में दिन रात ध्यान दिए रहना, इसलिए कि जो कुछ उस में लिखा है उसके अनुसार करने की तू चौकसी करे; क्योंकि ऐसा ही करने से तेरे सब काम सुफल होंगे, और तू प्रभावशाली होगा।” (यहोशू 1:8) (व्यवस्थाविवरण 11:18-21 भी देंखे) - प्रश्न खोजना – यदि आप पढते समय प्रश्नों को पूछेगें तो आप बाईबल को और भी अच्छी तरह से समझ सकते है – जैसे
- जिन लोगों के विषय में पढ रहा हूं ये कौन है?
- ये ऐसा कार्य क्यों कर रहे है?
- परमेश्वर ऐसा क्यों कर रहा है?
- यहां मेरे लिए क्या शिक्षा है?
- क्या यह किसी बात को दोहराती है जो मैने पहले पढी है?
लोगों की समस्याऐं
- “कठिन भाषा” – बाईबल का जो अनुवाद आप पढ रहे है यदि उसे समझने में आपको कोई कठिनाई है तो आप को कोई दूसरा अनुवाद पढना चाहिए। आज हमारे पास कुछ अन्य आधुनिक अनुवाद है जिनकी भाषा सरल है और जो पढने और समझने में आसान है। इसलिए अब बाईबल को समझने में कठिन भाषा कोई समस्या नही है।
- “यह अरूचिकर है” – सम्पूर्ण बाईबल को पढना आसान नही है। इसके कुछ भागों में नामों की सूचि या व्यवस्था का वर्णन है। लेकिन यह सब रूचिकर हो सकता है। जब आप कुछ पदों को पढते है तो उनके विषय में सोचे कि यह क्यों लिखे गये है और परमेश्वर इनके द्वारा हमें क्या सीखाना चाहता है। यदि आप इन पदों की पृष्ठभूमि को समझकर उस तक पहुँच जाते है तो यह बहुत रूचिकर होगा।
- “मैं बाईबल की पृष्ठभूमि से नही हूँ” – इस समस्या का केवल एक ही समाधान है कि कोशिश करते रहे। बाईबल के नियमित रूप से पढने से आप इसकी पृष्ठभूमि, सभ्यता और भाषा को धीरे-धीरे सीखते जायेगें। बाईबल कक्षा में सम्मिलित होने से और समूह में पढने से भी बहुत सहायता मिलती है। दूसरे लोगों के साथ बाईबल पढना प्राय: बहुत ही रूचिकर और आनन्दमय होता है। जो आप पढते है उस पर आप विचारविमर्श कर सकते है और बाईबल को अच्छे से समझने में एक दूसरे की सहायता कर सकते है।
बाईबल अध्ययन चुनौती भरा, उत्तेजना भरा और जीवन को बदलने वाला है। यह आपको इतना गुणवान बना सकता है जितना कोई दूसरा अध्ययन नही बना सकता। बाईबल की विषयवस्तु को खोजना विशेष आनन्दप्रद होता है। जब आप बाईबल के सिद्धान्तों पर आधारित निर्णय लेना सीख जायेंगे तो आप एक नयी ऊर्जा का अनुभव करेंगे और बाईबल आपके जीवन में और अधिक जीवन्त और शक्तिभरी हो जायेगी। याद रखिये कि आपने इस असाधारण पुस्तक के समझने और इसके पृष्ठो के द्वारा परमेश्वर से मिलने की इच्छा की है।
सारांश
यदि हम परमेश्वर को प्रसन्न करना चाहते है और उसकी इच्छा को समझना चाहते है तो बाईबल को पढना बहुत ही आवश्यक है। हमारी सहायता के लिए और हमें सीखाने के लिए परमेश्वर ने हमें बाईबल दी है। यदि आप निम्न लिखित बातों को ध्यान में रखेंगे तो आपका बाईबल पढना सफल होगा:
- नियमित और योजनाबद्ध तरीके से पढें और मनन करे।
- उसी अनुवाद को पढें जिसे आप अच्छी तरह से समझते हो।
- प्रश्न पूछे और उत्तर खोजे।
- बाईबल कक्षा या सामूहिक बाईबल में सम्मिलित हो।
विचारणीय पद:
- फिलेमोन की पुस्तक को पढकर निम्न लिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
- फिलेमोन, अफफिया और अरखिप्पुस के विषय में हम क्या जानते है?
- वे कहाँ रहते थे?
- पहली शताब्दी की और कितनी कलिसियाओं को हम जानते है जो घर में संगति करती थी (पद 2)? क्या हमें घर में संगति करनी चाहिए?
- उनेसिमुस कौन था और उसने क्या किया?
- उनेसिमुस को अपने पास वापस रखने के लिए पौलुस ने फिलेमोन को कैसे मनाया?
- दूसरे लोगों से व्यवहार करने के विषय में हम क्या सीख सकते है?
- प्रेरितो के काम 1:16-20 और यूहन्ना 13:18 में पुराने नियम के अंश को लिखा गया है जो यहूदा इस्करियोती के विषय में है:
- क्या पुराने नियम के ये पद यहूदा के विषय में है? यदि नही, तो किसके विषय में है?
- क्या पुराने नियम में यहूदा के विषय में अन्य पद भी आप खोज सकते है?
अन्य खोज
- वंशावली को कभी-कभी अरूचिकर समझा जाता है। जबकि ऐसा नही है! मत्ति के पहले अध्याय में यीशु की वंशावली को पढिये।
- वंशावली क्यों दी गयी है?
- वंशावली में चार स्त्रियों, तामार, राहब, रूत और बेतशेबा के विषय में बताया गया है। ये स्त्रियां किस राष्ट्र की थी? इससे हम क्या सीख सकते है?
- इनमें से तीन स्त्रियां व्यभिचार में लिप्त थी। इससे हम क्या शिक्षा ले सकते है?
- ऐसा लगता है कि कुछ वंश शामिल नही किये गये है। उनमें से ऐसे कुछ वंश खोजिये। (जैसे: उज्जिय्याह का पिता कौन था?)
- क्या पद 17 में दी गयी गिनती सही है? यदि नही है तो क्यों?
- लूका के अध्याय 3 में भी यीशु की वंशावली दी गयी है, लेकिन इसमें मत्ति से भिन्न नाम है। क्यों?
- योना अध्याय 1 को पढिए और अन्य लोगों के लिए 10 प्रश्नों की एक सूचि बनाईये।
‘बाईबल अध्ययन’ (‘Bible reading’) is from ‘The Way of Life’, edited by Rob J. Hyndman
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