तेरा वचन मेरे पांव के लिये दीपक, और मेरे मार्ग के लिये उजियाला है। भजन संहिता 119:105
तूफानों का सामना कैसे करें (How to face storms)
तूफान में एक बुद्धिमान व्यक्ति खतरे से बचाने के लिए परमेश्वर से प्रार्थना नही करता बल्कि वह डर को दूर करने के लिए प्रार्थना करता है बाहर के तूफान से नही बल्कि उसके अन्दर जो डर का तूफान है उससे उसको खतरा है। रेल्फ वाल्डो इमरसन।
तूफान नही बल्कि तूफान का डर हमें अपंग बनाता है। संकट के समय हमारी प्रतिक्रिया होती है कि क्या हम इससे तैरकर बच जायेंगे या डूब जायेंगे। फ्रैंकसलीन डिलेनो रूजवेल्ट ने कहा, “हमें केवल एक ही चीज से डरना है और वह स्वंय डर है।” इसलिए जनरल जॉर्ज पेटन ने कहा, “मैं कभी अपने डर की नही सुनता।”
बहुत से लोगों के साथ समस्या यही है कि वह अपने डर की सुनते है। बहादुर लोग भी डरते है, लेकिन उनका डर उन्हें अपंग नही बनाता। तूफान में एक छोटी सी नाव में प्रभु यीशु मसीह पीछे की ओर आराम से सो रहे थे और चेले डरे हुए थे। उन्होंने उन्हें जगाया। वे बहुत डरे हुए थे जबकि प्रभु यीशु मसीह डरे हुए नही थे। “और उन से कहा; तुम क्यों डरते हो? क्या तुम्हें अब तक विश्वास नही?” उनके विश्वास की कमी से डर पैदा हुआ। यही कारण है कि ईमरसन ने कहा कि बुद्धिमान व्यक्ति डर को दूर करने के लिए प्रार्थना करते है। यह बाहर का तूफान नही बल्कि हमारे अन्दर का डर है जो समस्याओं का कारण है।
हमारे जीवन में आये तूफान में हमारी कैसी प्रतिक्रिया होती है? हम सभी के जीवनों में तूफान आते है लेकिन एक जैसे तूफान में हम सब की प्रतिक्रिया एक जैसी नही होती है। हमारे जीवन में आये तूफान से पता चलता है कि क्या हम प्रभु पर विश्वास करते है या अपने बनाये संसाधनों पर विश्वास करते है। वास्तव में अपने आप से हम एक छोटे से तूफान के सामने भी शक्तिहीन है, ठीक वैसे ही जैसे चेले जानते थे कि लहरों के तीव्र प्रवाह से नाव को डूबने से बचाने के उनके सभी प्रयास व्यर्थ थे। उन्हें मृत्यु दिख रही थी और नही जानते थे कि क्या करें। उन्हें सहायता के लिए परमेश्वर की और मुडने की जरूरत थी। जब प्रभु यीशु मसीह जागे, तो उन्होनें तुरन्त परमेश्वर की सामर्थ से समुद्र को शान्त किया।
दाऊद ने कहा, “मैं यहोवा के पास गया, तब उस ने मेरी सुन ली, और मुझे पूरी रीति से निर्भय किया।”
परमेश्वर हमारे डर को दूर करता है, यह आवश्यक नही कि जिस चीज से हम डर रहे है वह उस चीज को दूर करे, बल्कि उसके कारण जो हमारा डर है उसको परमेश्वर दूर करता है। तूफान रह सकता है लेकिन सर्वशक्तिमान परमेश्वर की सहायता अब हमारे साथ है। यदि परमेश्वर हमारे साथ है तो कौन हमारे विरूद्ध हो सकता है? फिर दाऊद ने कहा, “चाहे मैं घोर अन्धकार से भरी हुई तराई में होकर चलूं तो भी हानि से न डरूंगा, क्योंकि तू मेरे साथ रहता है; तेरे सोंटे और तेरी लाठी से मुझे शान्ति मिलती है।”
कभी कभी हमें तराई से होकर चलना पडता है, लेकिन जब प्रभु हमारे साथ हो तो हमें डरने की आवश्यकता नही है। यदि हम सच्चाई से विश्वास करते है, “यहोवा के डरवैयों के चारों ओर उसका दूत छावनी किए हुए उनको बचाता है”, तब हम जीवन के किसी भी तूफान का सामना डर के साथ नही बल्कि दृढ़ता से कर सकते है।
हम प्राय: गाते है, “जहाज में मसीह के साथ तूफान में हम मुस्कराते है।”
प्रभु ने अपने चेलों से कहा, “प्रेम में भय नही होता, वरन सिद्ध प्रेम भय को दूर कर देता है, क्योंकि भय से कष्ट होता है, और जो भय करता है वह प्रेम में सिद्ध नही हुआ।” तो भय कैसे दूर होता है? सिद्ध प्रेम और विश्वास से होता है। हम इतने डरे हुए क्यों है? क्या ये हमारे विश्वास की कमी है या प्रभु के लिए हमारे प्रेम की कमी है? इसलिए जैसे ईमरसन ने सलाह दी हमें अपने अन्दर के तूफान के खतरे का जो भय है उसको दूर करने के लिए प्रार्थना करने की आवश्यकता है।
प्रभु यीशु मसीह तूफान से घिरे होने पर भी शान्त थे। यहां तक कि जब वे अपने जीवन के मुकदमें के लिए खड़े थे तो भीड़ के दोष भरे शब्दों और सिपाहियो के प्रहारों ने भी उनके अन्दर की शान्ति को विचलित नही किया। यशायाह ने कहता है, “जिसका मन तुझ में धीरज धरे हुए है, उसकी तू पूर्ण शान्ति के साथ रक्षा करता है, क्योंकि वह तुझ पर भरोसा रखता है।” गतसमने की वाटिका में मसीह की प्रार्थनाओं ने उनको स्थिर किया और इसलिए वे दृढ़तापूर्वक परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने पाये।
हम भी तूफानों से घिरे होने के बावजूद सिद्ध शान्ति में रह सकते है हमें अपने मन को उस पर स्थिर करने की आवश्यकता है जो हमें बचा सकता है। परमेश्वर को अपने जीवन के हर एक कार्य में सम्मिलित करने के लिए हमें बिना रूके प्रार्थना करने की आवश्यकता है। हमारा परमेश्वर हमारे जीवनों में उठने वाले तूफानों के भय से हमें बचाने की सामर्थ रखता है। हमारा परमेश्वर किसी भी तूफान से अधिक शक्तिशाली है।
यशायाह कहता है कि, “हमारा परमेश्वर, संकट में दीनों के लिए गढ़, और जब भयानक लोगों का झोंका भीत पर बौछार के समान होता था, जब तू दरिद्रो के लिए उनकी शरण, और तपन में छाया का स्थान हुआ” अपने सर्वशक्तिमान और दयालु स्वर्गीय पिता की सामर्थ और प्रेम में विश्वास करते हुए हम दाऊद के साथ कह सकते है, “चाहे मैं घोर अन्धकार से भरी हुई तराई में होकर चलूं, तौभी हानि से न डरूंगा; क्योंकि तू मेरे साथ रहता है; तेरे सोंटे और तेरी लाठी से मुझे शान्ति मिलती है।”
‘तूफानों का सामना कैसे करें’ (How to face storms) is taken from ‘Minute Meditations’ by Robert J. Lloyd
मृत्यु
(Death)
जब आप मर जायेंगे तो क्या होगा? क्या आपने कभी इसके विषय में सोचा है? यहां हम देखेंगे कि बाईबल मृत्यु के विषय में क्या बताती है। यहां हम इस बात को भी देखेंगे कि यदि हम मसीह विश्वासी है तो क्यों हमें मृत्यु से डरने की आवश्यकता नही है।
मुख्य पद – सभोपदेशक 9:1-10
सभोपदेशक में सुलेमान जीवन और मानवीय गतिविधियों के अर्थ के विषय में चिन्तन कर रहा है। वह अपने जीवन के अनुभव के विषय में विचार कर रहा है और खोज रहा है कि किस प्रकार यह संसार ऐसी बातों से भरा हुआ है जिन्हें समझना कठिन है।
यहां सुलेमान धर्मी और अधर्मी दोनों प्रकार के लोगों के एक जैसे भविष्य पर विचार करता है। अन्त में वह कहता है कि परमेश्वर की सेवा का हमें जो भी अवसर मिले उसे हमें नही छोडना चाहिए और हमें अभी से परमेश्वर की सेवा के लिए कार्य करना चाहिए। क्योंकि मृत्यु के बाद हमें ऐसा कोई अवसर नही मिलेगा।
- सभी के साथ होने वाली एक समान घटना क्या है? (पद 2)
- जो लोग मरे हुए लोगों से बाते करने का दावा करते है उन पर इन पदों का क्या प्रभाव पडेगा?
- पद 5 व 6 की पृष्ठभूमि में, पुर्नरूत्थान की आशा को, हम कैसे समझ सकते है? (संकेत – “सूर्य के नीचे” का क्या अर्थ है?)
- पद 8 का क्या अर्थ है?
मरे हुए कुछ भी नही जानते
सुलेमान यहां मृत्यु को अचेतन की एक अवस्था बताता है जिसमें कोई सोच नही होती, कोई भावना नही होती, कुछ कार्य करने की योग्यता नही होती। मृत्यु चेतन अवस्था का समापन है। मृत्यु का यह दृश्य सम्पूर्ण बाईबल में मिलता है। भजन संहिता के निम्न पदों पर विचार कीजिए:-
“क्योंकि मृत्यु के बाद तेरा स्मरण नही होता; अधोलोक में कौन तेरा धन्यवाद करेगा?” (भजन संहिता 6:5)
“मृतक जितने चुपचाप पड़े है, वे तो याह की स्तुति नही कर सकते, परन्तु हम लोग याह को अब से लेकर सर्वदा तक धन्य कहते रहेंगे। याह की स्तुति करो” (भजन संहिता 115:17-18)
“परन्तु प्रधानों पर भरोसा न रखना, न किसी आदमी पर, क्योंकि उस में उद्धार करने की भी शक्ति नही। उसका भी प्राण निकलेगा वह भी मिट्टी में मिल जायेगा; उसी दिन उसकी सब कल्पनांऐ नाश हो जाएंगी” (भजन संहिता 146:3-4)
ये पद बताते है कि ‘प्राण निकलता’ है और मृत्यु हो जाती है। “प्राण” किसी व्यक्ति का चेतन या विचार करने वाला भाग नही हो सकता, क्योंकि ऐसा होने पर इन पदों में विरोधाभाष हो जायेगा। इस प्राण को, जिसके निकलने से मृत्यु हो जाती है, बाईबल में दूसरे स्थानों पर “जीवन का स्वांस” कहा गया है।
जीवन का स्वांस
जब परमेश्वर ने आदम को बनाया तो उसने उसके शरीर को भूमि की मिट्टी से बनाया। फिर परमेश्वर ने उसमें “जीवन का श्वांस” देकर उसको जीवता प्राणी बनाया यद्यपि परमेश्वर के द्वारा बनायी गयी सृष्टी में मनुष्य उसकी विशेष रचना थी तो भी केवल मनुष्य ही ऐसी रचना नही थी जिसमें जीवन का श्वांस था। बाईबल बताती है कि जानवरों में भी जीवन का श्वांस है। उदाहरण के लिए बाढ़ के समय के इन पदों को देखें-
“और क्या पक्षी, क्या घरेलू पशु, क्या बनैले पशु, और पृथ्वी पर सब चलने वाले प्राणी, और जितने जन्तु पृथ्वी में बहुतायत से भर गए थे, वे सब, और सब मनुष्य मर गये। जो जो स्थल पर थे, उन में से जितनों के नथनों में जीवन का श्वांस था, सब मर मिटे।” (उत्पत्ति 7:21-22) (उत्पत्ति 1:30 भी देंखे)
जीवन का श्वांस परमेश्वर की एक ऐसी सामर्थ है जिसके द्वारा वह जीने वाली सभी चीजों को जीवित रखता है। इसके बिना हम मर जायेंगे। भजन संहिता 104 में वर्णन है कि परमेश्वर ने बहुत से जानवरों को बनाया और कहता है कि,
“...तू उनकी सांस ले लेता है, और उनके प्राण छूट जाते है और मिट्टी में फिर मिल जाते है। फिर तू अपनी ओर से सांस भेजता है, और वे सिरजे जाते है; और तू धरती को नया कर देता है।” (भजन संहिता 104:29-30)
“प्राण” और “श्वांस” इब्रानी भाषा के एक ही शब्द के अनुवाद है। अत: परमेश्वर का आत्मा या श्वांस जीवन देता है; जब वह इसे वापस ले लेता है तो मृत्यु हो जाती है।
मिट्टी में मिलना
आदम और हव्वा के पाप करने के बाद मनुष्यों पर मृत्यु आयी। परमेश्वर ने आदम से कहा-
“भूमि तेरे कारण शापित है ... तू अपने माथे के पसीने की रोटी खाया करेगा, और अन्त में मिट्टी में मिल जायेगा; क्योंकि तू उसी में से निकाला गया है, तू मिट्टी तो है और मिट्टी ही में फिर मिल जायेगा।” (उत्पत्ति 3:17-19)
बाईबल प्राय: मृत्यु को “मिट्टी में मिल जाना” बताती है। शाब्दिक रूप से ऐसा होता भी है। बाईबल ऐसा नही बताती कि मृत्यु के बाद व्यक्ति का कोई भाग जीवित रहता है, ऐसा केवल उच्च अलकांरिक दृष्टान्तों में है।
सभोपदेशक में सुलेमान मृत्यु का वर्णन इस प्रकार करता है-
“...मिट्टी ज्यों की त्यों मिट्टी में मिल जाएगी, और आत्मा परमेश्वर के पास जिस ने उसे दिया लौट जाएगी।” (सभोपदेशक 12:7)
फिर से यहां “आत्मा” मूल भाषा में वही शब्द है जो “श्वांस” के लिए आया है। जब परमेश्वर इस सामर्थ को वापस ले लेता है, जो हमें जीवत रखती है, तो हम मिट्टी में मिल जाते है।
मृत्यु की नींद
बाईबल में मृत्यु का दूसरा सामान्य वर्णन ‘नींद’ है। उदाहरण के लिए निम्न पद को देखें-
“हे मेरे परमेश्वर यहोवा मेरी ओर ध्यान दे और मुझे उत्तर दे, मेरी आंखो में ज्योति आने दे, नही तो मुझे मृत्यु की नींद आ जाएगी।” (भजन संहिता 13:3)
यीशु ने कहा,
“हमारा मित्र लाजर सो गया है, परन्तु मैं उसे जगाने जाता हूं। तब चेलों ने उस से कहा, हे प्रभु यदि वह सो गया है, तो बच जाएगा। यीशु ने तो उस की मृत्यु के विषय में कहा था; परन्तु वे समझे कि उस ने नींद से सो जाने के विषय में कहा।” (यूहन्ना 11:11-13)
“(यीशु) पाँच सौ से अधिक भाईयों को एक साथ दिखाई दिये, जिन में से बहुतेरे अब तक वर्तमान है पर कितने सो गए।” (1 कुरिन्थियों 15:6)
बाईबल में इस अलंकार को प्रयोग करने का एक स्पष्ट कारण है जैसे लोग नींद से जागकर उठ जाते है ठीक वैसे ही वे मृत्यु से जागकर उठ जाएगें।
जैसे दानिय्येल ने भविष्यवाणी की–
“और जो भूमि के नीचे सोए रहेंगे उन में से बहुत से लोग जाग उठेंगे, कितने तो सदा के जीवन के लिए, और कितने अपनी नामधराई और सदा तक अत्यन्त घिनौने ठहरने के लिये।” (दानिय्येल 12:2)
मृत्यु प्रत्येक व्यक्ति के लिए सदा तक रहने वाली अवस्था नही है। जब यीशु मसीह पुन: इस पृथ्वी पर आयेंगे तो बहुत से लोगों का जो मर चुके है फिर से इस मृत्यु की नींद से जागकर पुर्नरूत्थान होगा।
कुछ सम्बन्धित पद
मृत्यु की अचेतन अवस्था | भजन संहिता 6:5; 88:10-12; 115:17; 146:3-4; सभोपदेशक 9:1-10 |
मिट्टी में मिलना | उत्पत्ति 3:17-19; अय्यूब 10:19; 34:15; भजन संहिता 90:3; 104:29; सभोपदेशक 3:20; 12:7 |
मृत्यु की नींद | व्यवस्थाविवरण 31:16; अय्यूब 7:21; 14:12; भजन संहिता 13:3; दानिय्येल 12:2; मत्ति 9:24; यूहन्ना 11:11-13; प्रेरितों के काम 13:36; 1 कुरिन्थियों 11:30; 15:6, 51; इफिसियों 5:14; 1 थिस्सलुनीकियों 4:14; 5:10 |
अमर प्राण
इस सब में मृत्यु का वह सामान्य विचार कहा छूट गया कि मृत्यु के बाद प्रत्येक व्यक्ति की अमर आत्मा स्वर्ग में जाती है? वास्तव में बाईबल इस विश्वास के विषय में कुछ नही बताती है।
बाईबल में वर्णित “प्राण” के दो अर्थ है; इसका अर्थ व्यक्ति हो सकता है, या इसका अर्थ किसी व्यक्ति की भावनायें हो सकती है। उदाहरण के लिए यहेजकेल द्वारा प्रयोग किये गये “प्राण” शब्द का अर्थ “व्यक्ति” से है। जब वह लिखता है कि,
“जो प्राणी पाप करे वही मरेगा, न तो पुत्र पिता के अधर्म का भार उठाएगा और न पिता पुत्र का।” (यहेजकेल 18:20)
दूसरे शब्दों में, प्रत्येक व्यक्ति अपने ही पापों के लिए दण्डित होगा, अपने पिता या पुत्र के नही। ‘प्राण’ का दूसरा अर्थ हम इस पद में देखते है जिसमें कहा गया है कि तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने “सारे मन और अपने सारे प्राण” और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख। इसका अर्थ स्पष्ट है कि अपने सम्पूर्ण अन्त:करण से प्रेम रख। ‘प्राण’ शब्द के ये दोनों प्रयोग ही मृत्यु के बाद किसी चेतन अस्तित्व के विषय में नही बताते है।
बाईबल मृत्यु के बाद एक आशा की बात करती है लेकिन तुरन्त नही। बाईबल की मृत्यु के बाद की आशा यीशु मसीह के पुन: आगमन पर पुर्नरूत्थान के द्वारा है, न कि मृत्यु के बाद किसी भाग के अस्तित्व में रहने के द्वारा।
हम क्यों मरते है?
पौलुस ने लिखा,
“इसलिए जैसा एक मनुष्य के द्वारा पाप जगत में आया, और पाप के द्वारा मृत्यु आई, और इस रीति से मृत्यु सब मनुष्यों में फैल गई, इसलिए कि सब ने पाप किया। तो भी आदम से लेकर मूसा तक मृत्यु ने उन लोगों पर भी राज्य किया, जिन्होंने उस आदम के अपराध की नाई जो उस आने वाले का चिन्ह है, पाप न किया।” (रोमियों 5:12,14)
इसलिए हमारी मृत्यु होने के दो कारण है
- पहला, हमें मृत्यु आदम से विरासत में मिली।
- दूसरा, हमने पाप किया इसलिए मृत्यु के हकदार है।
प्रभु यीशु मसीह केवल पहले कारण से मरे।
सारांश
बाईबल में वर्णित मृत्यु
- “जीवन की श्वांस” का परमेश्वर के पास लौटना।
- कब्र में व्यक्ति की अचेतन अवस्था।
- शरीर का मिट्टी में मिल जाना।
- जब प्रभु यीशु मसीह वापिस आयेंगे तो बहुत से लोग जिलाये जायेंगे और न्याय होगा और कुछ को अनन्त जीवन दिया जायेगा।
विचारणीय पद
- फिलिप्पियों 1:23-24 को पढ़े। पौलुस ने मृत्यु के लाभ को देखा जो कि, “मसीह के पास” जाकर रहना है। दूसरे अन्य सभी पद सिखाते है कि मृत्यु के बाद व्यक्ति अचेतन अवस्था में रहता है, इससे पौलुस का क्या अर्थ है?
- 1 शमूएल 28: 7-20 को पढ़े।
- इससे क्या पता चलता है कि वह स्त्री सामान्यत: लोगों को नही देख सकती थी बल्कि मरे हुए लोगों से सम्पर्क करके वह देखने का दावा करती थी?
- क्या शमूएल पुन: जीवित हो गया था या यह एक सपना था?
- व्यवस्था में उन निर्देशों को खोजिए जहां मृतकों से बात करना प्रतिबन्धित बताया गया है।
अन्य खोज
- 2 तिमुथियुस 1:10 और इब्रानियों 2:14 दोनों बताते है कि यीशु ने मृत्यु का नाश किया। इसका क्या अर्थ है? (रोमियों 6:23 देखें)
- इब्रानियों 2:15 बताता है कि यीशु ने हमें “मृत्यु के भय” से छुड़ा लिया। हमें मृत्यु से डरने की आवश्यकता क्यों नही है? क्या आप मृत्यु से डरते है? यदि हां तो क्यों डरते है और यदि नही तो क्यों नही डरते है वर्णन करो। (1 थिस्सलुनीकियों 4:13 देखें)
‘मृत्यु’ (Death) is from ‘The Way of Life’, edited by Rob J. Hyndman
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